सोमवार, 16 मार्च 2009

सच सच कहना आज कहाँ है...

जिन गलियों में तुम और मैं कदम कदम पर साथ चले थे

उन गलियो की उड़ती धूल मन में मीलो महक रही है


चौराहों पर घंटो घंटे बातों बातों बिता दिए थे

मूंग फलियो के उन छिलकों में कुछ कुछ दाने मेरे भी थे


मूवी में वो मीठी सीटी बजा बजा के मजे लिए थे

आगे बैठी सुन्दर लड़की अन्दर अन्दर बसी हुई है


बारातों में घोडी आगे नच नच भंगडे जो किये थे

वो लड़की अब ताने कसती खिल खिल हंसती यादों में है


परीक्षा की वो तैयारी जब रातों रातों साथ जगे थे

चाय बनाना किसकी बारी चुस्की चुस्की याद मुझे है


होटल की वो आधी चाय पूरा पूरा दिन ले लेती

ऊँचे सुर के हंसी ठहाके और खुश खुश चेहरे आज कहाँ है


मंदिर चढ़ कर चढ़े चढावे कर बटवारा बांटे थे

उनको खाते देखे सपने सच सच कहना आज कहाँ है... !

7 टिप्‍पणियां:

के सी ने कहा…

सुन्दर कविता के लिए बधाई बड़ा अच्छा लगा पढ़ के, आपकी तीनों रचनाओं में गजब का वैविध्य देखने को मिला, एक व्यंग्य आलेख एक गीत और फिर ये उन्मुक्त उड़ान भरती कविता !

प्रकाश पाखी ने कहा…

शुक्रिया किशोरजी ,वैसे यह रचना जब मैं वडोदरा पदस्थापन पर गया था तब बिछुडे साथियों की याद में लिखी थी आज इसको उन्ही दोस्तों को समर्पित किया है ...

Puja Upadhyay ने कहा…

अच्छी कविता है, यादों को बड़े प्यार से समेटा है आपने और लफ्जों में करीने से लगाया है. हॉस्टल लाइफ की खट्टी मीठी यादें होती ही ऐसी हैं कि बरसों बाद भी मन को भिगा दें. कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा दें, कमेन्ट करने में एक स्टेप खामखा का बढ़ जाता है...हिंदी ब्लोग्स में अभी तक स्पैम कमेन्ट ने छापा नहीं मारा है.

Puja Upadhyay ने कहा…

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sandhyagupta ने कहा…

Purani yaadon ko kavita ki panktiyon me bakhubi piroya hai aapne.

बेनामी ने कहा…

वाह आप तो कलम के सिपाही
निकले ,कविता शानदार है ,शब्द
और भाव में होड़ मची है सुन्दर दिखने की और लिखते रहे, हम इंतजार करेंगे

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

जिन गलियों में तुम और मैं कदम कदम पर साथ चले थे
उन गलियो की उड़ती धूल मन में मीलो महक रही है
चौराहों पर घंटो घंटे बातों बातों बिता दिए थे
मूंग फलियो के उन छिलकों में कुछ कुछ दाने मेरे भी थे.......वाह ...!!

सुन्दर कविता के लिए बधाई ...!!