शनिवार, 2 मई 2009

पलक झपकी न थी कि मंजर बदल गया 'पाखी'...

दुर्घटना में किसी को खोने के बाद शेष जिन्दगी
ताश पत्तों के घरौंदे से गुजरा था तूफ़ान कोई
न जाने कहाँ कहाँ तक बिखर गई जिन्दगी सारी

बड़ी भीड़ में बच्चे सा खो गया अरमान कोई
बदहवास उसने उसे ढूँढा कहाँ नहीं जिन्दगी सारी

भर आये दिल और ग़मजदा आँखों के कोनें
निकल के दरिया वहां से बहती रही जिन्दगी सारी

पलक झपकी न थी कि मंजर बदल गया 'पाखी'
पल भर में किस तरह से बदल गयी जिन्दगी सारी

6 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति।

बिखरे न जीवन कभी यह जीने का मूल।
खोये जो अरमान तो यह भी होगी भूल।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

के सी ने कहा…

ग़ज़ल बेहद खूबसूरत लगी मुझे, हालाँकि मेरी इस विषय में समझ कम ही नहीं वरन शून्य है, आपको बधाई

rajkumari ने कहा…

आपके शब्द मुझे अपने दिल के करीब से लगते हैं, ग़ज़ल के सब शेर आसाँ भी और मुश्किल भी, बहुत बार पढ़ा इनको .... बधाई

sanjay vyas ने कहा…

बढ़िया कहा आपने.जीवन में कई पल बहुत भारी होते है.और ये गुज़रते नहीं, लौट कर बार बार आते है.

अजय कुमार झा ने कहा…

बिल्कुल सही आईटम उठाने की सोची है...पाब्ला जी को किड्नैप करना हो तो हम भी सर्किट के साथ हैं..मगर शर्त ये है कि उनको रखना दिल्ली में होगा....सर्किट तैयार है क्या....

अजय कुमार झा ने कहा…

लगता है टीप गलत जगह लग गयी जी..