सोमवार, 10 अगस्त 2009

चाहिए न और पाखी हासिल अब जो पुरनमी है


बहरे रमल मुसमन मशकूल के बारे में गुरुदेव सुबीरजी के पिछली पोस्ट में जानकारी दी गयी थी.विचार आया कि कुछ अभ्यास किया जाए.
फाएलातु फाएलातुन फाएलातु फाएलातुन
(२१२१ २१२२ २१२१ २१२२)
इस पर कोशिश करने लगा,फिर लगा कि क्षमता से बड़ा काम पकड़ लिया है...पर मर खप कर गजल लिख डाली..कुछ हलकी फुलकी सी बन पड़ी है...सो आपके सामने पेश कर रहा हूँ पिछली बार गुरु भाइयों ने अच्छी खासी क्लास ले ली थी...अब के रदीफ़ काफिये का ख्याल रखागाया गया है...पर इस बार बहर में कुछ कमी रहती महसूस हुई है....मेरे लिए तो मुश्किल बहर थी...आप लोगों कि इस्लाह की जरूरत है ...इस बार गुरुदेव के डंडे पड़ने की पूरी संभावना है...गुरुदेव को ईमेल के जरिये यह गजल भेज दी है तो अगर वे चाहेंगे तो ईमेल के जरिये प्रसाद दे देंगे ..पर अगर कुछ सिखाने लायक ऐसा होगा कि सबके काम आसकता है तो अवश्य ही मुझ पर सार्वजनिक रूप से डंडे पड़ेंगे इस हिसाब से आपकी शुभकामनाओं कि भी जरूरत है...तो पेश है एक नौसिखिये की गजल-

आज शाम उनकी महफ़िल में मिरा जिक्र हुआ था
अब किसे है हार का गम जीत वो गए ख़ुशी है


उम्र इंतजार में बीती मिले,झलक दिखी बस
वो हुए करीब पलभर बात अब जरा बनी है


सोचता कि वो मिरे है इक ख़याल झूठ कहता
जो मिरी मिरे खयालेहस्त आज दुश्मनी है


फूल था किताब में मदहोश हम हुए कि खुशबू
सूखने के बाद भी थी ईद याद जो बसी है


चाह के जिसे लुटाया सब, पूछे तुझे मिला क्या
चाहिए न और पाखी हासिल अब जो पुरनमी है

पाखी
(चित्र गूगल सर्च से साभार लिया गया है...)

19 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

उम्र इंतजार में बीती मिले,झलक दिखी बस
वो हुए करीब पलभर बात अब जरा बनी है

आपके कुछ शेर तो अछे बन पड़े हैं............. बाकी गुरु देव तो अपना काम करेंगे ही

के सी ने कहा…

प्रकाश जी, अब ग़ज़ल गंभीर हुई जाती है पर मुझे तो आप जैसे पहले थे ज्यादा पसंद थे, इस बार आपकी लम्बी अनुपस्थिति पर विचार होता रहा फिर आज संजय भाई ने बताया सबब. सुबीर जी के सानिध्य में और आसानियाँ बढ़ती जाये यही दुआ है.

प्रकाश पाखी ने कहा…

किशोर जी,
आप बिलकुल फ़िक्र न करे आपका ये भाई कहीं भी गम्भीर नहीं होगा...कुछ पारिवारिक व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग से दूर था...गजल के अभ्यास का अच्छा अवसर सुबीर जी के सानिध्य में मिल रहा है तो कविता और गजल लिखने की इच्छा रखने वाला मेरा मन अपने को चाह के भी रोक नहीं पाता है...कुछ तकनिकी पक्ष कविता और गजल का होता है तो ब्लॉग पर कई भाइयो के सहयोग से उसमे कुछ सीख पा रहा हूँ बस यूं समझिये कि कुछ होमवर्क कर रहा हूँ...संजय जी को बता चुका हूँ कि कुछ लिखने की सोच रखी है पर थोडा अधिक समय चाहिए जो आजकल मिल नहीं रहा है...मिलते ही ब्लॉग पर कुछ लिखने का प्रयास करूंगा...आपकी पोस्ट कल पढ़ी थी पर टिप्पणी आज करूंगा ....

गौतम राजऋषि ने कहा…

मुश्किल बहर पर अच्छा प्रयास है प्रकाश भाई...गुरू जी तो अव्श्य बतायेंगे, तब तक मैं थोड़ा आपरेशन करता हूँ। बस अपने अभ्यास के लिये...
पहले मिस्‍रे में "जिक्र" की वजह से मिस्‍रा वजन से बाहर जा रहा है। जिक्र का वजन २१ होता है जबकि आपने १२ लिया है।
दूसरे शेर में पंक्तियां तो वजन पे बैठ रही है लेकिन शब्दों को वजन पर बिठाने के फेर में भाव अटपटा हो गया है।...जानते हैं प्रकाश भाई हम सब ऐसे ही थे शुरू में...धीरे-धीर प्रस्तुत करने लायक कहने लगे, लेकिन अभी भी कम से कम इस जनम में तो सही मायने में ग़ज़ल ना कह पायेंगे हम।
तीसरा शेर भी वजन में दुरूस्त है, लेकिन शायर जो कहना चाहता है वो स्पषट नहीं हो पा रहा।
और यही बात चौथे शेर के साथ भी है...
आखिरी शेर में आपने "हासिल’ और "अब" को जोड़ कर बहुत अच्छा प्रयास किया है। उस्ताद लोग ही करते हैं ऐसा। लेकिन भाव पक्ष फिर से compromise हो गया है\
अब गुरू जी के डंडे का इंतजार है।गुरू जी तो इसे चमका देंगे....बेसब्री से इंतजार है।

प्रकाश पाखी ने कहा…

गौतम भाई,
शुक्रिया...बहुत अच्छा लगा कि आपने सही विश्लेष्ण किया...बस मुझे जहाँ अटपटा लग रहा था वंहा आपने कारण भी बता दिए....तीसरे शेर में ख्याल का एक अर्थ बदगुमानी या बुरे कीआशंका लिया और खयालेहस्त का अर्थ आशंका की मौजूदगी अर्थात आशा और आशंका के परस्पर आते उतार चढाव को अभिव्यक्त करने का प्रयास किया था...पर मुश्किल बहर को निभाने में पसीना छूट गया ...पर मुझे लगता है कि अपनी तो वाट लगने वाली है...गुरुदेव के डंडो से पहले गुरुभाइयों के डंडे ?? बाप रे !
प्रकाश पाखी

वीनस केसरी ने कहा…

जहाँ डंडा परेड होने वाली हो वहां से हम कल्टी मार लेते है
पाखी भाई हाँथ की सिकाई कर के रखो गुरु जी आते ही होंगे :)

आपने कहा ""पेश है एक नौसिखिये की गजल-""


बहर तो बाद की बात है मियां, पहले ये बताइए मतला कहाँ है

वीनस केसरी

नीरज गोस्वामी ने कहा…

प्रकाश जी पहले भाव पक्ष पर ध्यान दीजिये...बहर का नंबर बाद में आएगा...गौतम जी ने सही कहा हम सब पहले आप की ही तरह थे...लेकिन करत करत अभ्यास के जड़ मति होत सुजान...रट रट कर अपने आपको सुजान करने के भागीरथी प्रयास में लगे हुए हैं...गुरूजी शिखर पर पहुँचने में मदद तो करते हैं लेकिन पाँव तो आपको ही बढ़ाना पड़ेगा ना...निसंकोच लिखते रहिये...रुकिए या घबराईये मत...रोम एक दिन में नहीं बना था...ये मुहावरा सुने हैं ना आप...बस खुद को रोम ही समझिये और खुद को ईंट दर ईंट बनाते चलिए...शुभकामनाएं.
नीरज

प्रकाश पाखी ने कहा…

वीनस भाई,
संकट में छोड़ के जा रहे हो??? ......वैसे आपकी जगह मैं होता तो डंडा परेड देखने ठहर जाता.....ये तो नीरज भाई है जो कमसे कम हिम्मत तो बंधाई है....
फिर भी शुक्रिया....!
आपका
प्रकाश पाखी

sanjay vyas ने कहा…

ग़ज़ल के व्याकरण और भाव पक्ष पर टिप्पणीकारों ने काफी कुछ कह दिया है. मैं यही कहूँगा कि आप एक ऐसी कला को साध रहे हैं जिसमें ये दोनों पक्ष संतुलित रहें ये मांग बनी रहती है.आप वही कर रहे हैं जो सीखा जा सकता है. भाव आपके पास पहले से ही मौजूद है. आप हर वक्त कुछ न कुछ अपने में जोड़ रहें है और हम सिर्फ टिप्पणी किये जा रहें है:)
पढने में मुझे ये मुश्किल लगी.शायद व्याकरण की मांग के चलते ऐसा ही रूप सायास लाया गया हो.
मेरी मतवातर हौसलाफजाई का शुक्रिया.

कंचन सिंह चौहान ने कहा…

गौतम जी ने सही तरीके से बात कह दी है....!

अब मैं एक सलाह दे सकती हूँ आपको, कि उस बहर से संबंधित कोई लय चुन लीजिये या गीत जो उस बहर पर हो, उसी पर गुनगुनाते हुए लिखिये शायद बहुत कुछ मात्राओं पर आने लगे....!

:) :) नही ..नही .. मैं ऐसे ही नही करती हूँ, लेकिन सुबह आपकी पोस्ट देखने के बाद से सोच रही थी कि आपकी समस्या का समाधान कैसे किया जाये...?? तो ये खयाल आया...!

वैसे जिस लगन से आप लगे हुए हैं, मुश्किल से २ माह के अंदर हमें गुरुकुल में बहुत तेज कंपटीटर मिलने वाला है। :)

प्रकाश पाखी ने कहा…

कंचन जी,
बहुत आभार....!गौतम भाई के आपरेशन पराक्रम के बाद आप की सहानुभूति मिली...पर मुझे बहुत आनंद आया..अगर आप लोगों को मेरे सीखने की इतनी फ़िक्र नहीं होती तो इतना कुछ समय आपलोग मेरी इस क्षुद्र रचना में पढने और उस पर टिप्पणी करने में कभी नहीं लगाते...शायद आप सब ने मेरे सीखने की ललक को बहुत मान दिया है...यह आप सब का अहसान ही है मुझ पर...मुझे कोई गुमान नहीं है कि बहुत बड़ा शाईर बन जाऊंगा...पर कविता और छंद के बारीक तकनिकी पक्षों की जो जानकारी आदरणीय गुरुदेव और आप लोगों से चर्चा से मिल रही है उसने मेरे मन में गजल लेखन की कला के प्रति गहरा सम्मान जागृत किया है...और मेरे लिए इतना काफी है...मुझे सीखने में और अपने आप को सुधारने में बड़ा अच्छा लगता है...गजल लिख पाऊं या नहीं मुझे फरक नहीं पड़ता, गजल को समझ भी पाया तो उपलब्धी मानूंगा ...आशा करता हूँ आपका स्नेह इसी तरह बना रहेगा !
प्रकाश पाखी.

वीनस केसरी ने कहा…

अरे प्रकाश भाई मैंने तो मज़ाक मज़ाक में बात कही और आप बुरा मान गए
ठीक है अब रुक जाते हैं जैसी आपकी मर्जी >>>>>>>>>>>
:):):):) अब जब हमारी डंडा परेड होगी तो आपको दर्शनार्थ बुलावा भेजूंगा

वैसे आप ये बहुत अच्चा करते है की कमेन्ट का जवाब देते चलते है मेरी दिली तमन्ना है की main भी ऐसा किया करून मगर संभव नहीं हो पता

वीनस केसरी

शोभना चौरे ने कहा…

ham to gjal ki a b cd bhi nhi jante
par hme to bhav ache lge isliye badhai .

Urmi ने कहा…

वाह क्या बात है! इस शानदार और लाजवाब पोस्ट के लिए ढेर सारी बधाइयाँ! शेर तो कमाल के लिखे हैं आपने! आपकी लेखनी को सलाम!

Akanksha Yadav ने कहा…

Bahut khub..umda gazal !!
"वन्देमातरम और मुस्लिम समाज" को देखें "शब्द-शिखर" की निगाह से...

sandhyagupta ने कहा…

Takniki chijon ko jane dijiye,sahitya main bhav ko pradhanta milni chaiye.Is dristi se kahin se bhi halki nahin yah gazal.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

bahut hi behtareen.......

BrijmohanShrivastava ने कहा…

यह ग़ज़ल न तो नौसिखिये की है न ही हल्की फुल्की है |
हमारी हार पर उनका जीतना यही त्याग की परिभाषा है |
दूसरे शेर में बीती के बाद भी कोमा लगा दीजिये |
तीसरा शेर समझने में दिक्कत आई
किताब में फूल रखना पुरानी परिपाटी है
सब कुछ लुटाके होश में आये तो क्या किया

Alpana Verma ने कहा…

achchee lagi aap ki gazal ..