शनिवार, 21 नवंबर 2009

जरा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है

काफी दिनों से बाहर होने से ब्लॉग जगत से दूर रहा।गुवाहाटी और कोलकता की लम्बी यात्रा और कई मधुर संस्मरण मन में इस तरह से समाये है कि कुछ करने का जी नहीं कर रहा है.वापस आया तो हफ्ते भर के सारे बकाया काम मेरा इन्तजार कर रहे थे. ब्लॉग जगत के सारे मित्रो से दूर रहने की माफ़ी मांगते हुए आज उपस्थिति दर्ज करवा रहा हूँ. आज एक तुकबंदी पेश कर रहा हूँ जो आज की गजल ब्लॉग पर प्रकाशित होने वाली एक तरही से प्रेरणा लेकर लिखी है.


कहाँ है हम गलत, है ठीक तू भी जो नहीं, पर ये
तिरी लौ का असर, तू जो कहे हम मान लेते है

जरा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है
सयाने तो इसे पीने से पहले छान लेते है

ख़ुशी करती अता ग़म का नजारा भी कराती तू
तुझे ऐ जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते है

जगत मत आंक कम,हम है सिपाही देश के,डट के
अतुल साहस दिखा,करते वही जो ठान लेते है

लुटा सब आज हमने कौम के नेता चुने,चल फिर
बिछौना कर जमीं,तारों की चादर तान लेते है

खुदा,भगवान् से तू पूछ पाखी नाम पे तेरे
बनाए पाक मजहब क्यूँ किसी की जान लेते है

प्रकाश पाखी

21 टिप्‍पणियां:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

ख़ुशी करती अता ग़म का नजारा भी कराती तू
तुझे ऐ जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते है


Waah! bahut hi khoobsoorat panktiyan....

achchi lagi aapki yeh post.....

वीनस केसरी ने कहा…

प्रकाश भाई

अच्छी तुक्बन्दी पढवाई तरही मिसरे क बहुत बढिया उप्योग किया

sanjay vyas ने कहा…

आपका स्‍वागत.इस बार इंतज़ार कुछ ज्‍़यादा ही लंबा रहा.उम्‍मीद है यात्रा के चित्रों को देखने का मौका यहां मिलेगा.
आपकी उपस्थिति दर्ज़ करवाने की इच्‍छा ने हमें बेहतर रचना पढने का मौका दिया...शुक्रिया.

के सी ने कहा…

प्रकाश जी, ये आवारगी का नतीजा है...
फिराक साहब आपको गलियाँ दे रहे होंगे, तरही भी अब गोया आई सी एस का एक्जाम हो गया है, दिल की बातें रही नहीं, शेर के भीतर का हुस्न -ओ-आवाज़ जाती रही, सब मात्राओं का खेल सीख रहे हैं. जो थोड़ा सीख गए हैं वे इसके हिमायती हो कर अच्छी बनी गज़क खा रहे हैं, जो नहीं सीखे वे अब भी दिल की ग़ज़ल कह रहे है. तरही को सुन समझ कर कई दिवंगत शायरों की आत्माएं खून के आंसू रोती है.

तबीयत अपनी घबराती है ऐसे तरही को सुनने में
हम ऐसे में कानों पे तकिया सर पे चादर तान लेते हैं
शाईर फ़िराक गोरखपुरी साहब के शब्दों का विनम्र दुरुपयोग, मुआफी सहित.

"अर्श" ने कहा…

जरा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है
सयाने तो इसे पीने से पहले छान लेते है

moddaton baad dikhe ho miyaan... यह she'r khasa pasand
aayaa badhaayee ho ....


arsh

अपूर्व ने कहा…

जरा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है
सयाने तो इसे पीने से पहले छान लेते है

कैसे लिख डाला आपने यह शेर..आया कैसे दिमाग में..
पहले ही दोनो शेरों से ऐसा कांस्टीपेशन हो गया कि आगे बढ़ा ही नही जाता अब..
फिर आता हूँ..

Alpana Verma ने कहा…

'जरा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है
सयाने तो इसे पीने से पहले छान लेते है'

waah! bahut umda!

is par to taaaliyan hi taaliyan milengee!
yah sher nahi sawaa sher hai!

waise poori hi gazal khoob kahi hai.

प्रकाश पाखी ने कहा…

देर से आया तो किशोर जी की गालिया तो सुननी ही थी... @किशोर भाई.....माफ़ कर दो बहुत दिनों से आपकी खिचाई नहीं कर सका ...अब शिकायत दूर कर दूंगा...आवारा तो कह ही दिया है....तो अब????........वैसे यह तुकबंदी (तरही)ही क्यों ब्लॉग पर डाली इसका जवाब आपको इ मेल पर दे दूंगा... @महफूज भाई.....आपकी रचनाओं से मोबाइल पर ही रूब रू हो पाया हूँ...अब नेट पर फुर्सत से पढ़ रहा हूँ...शुक्रिया!
@वीनस भाई....आपका शुक्रिया...पढने के लिए बहुत मस्साला है तो आनंद से पढूंगा...
@संजय ..आपको निराश नहीं करूंगा...यात्र वृत्तांत और फोटो जल्दी ही ब्लॉग पर देने का प्रयास करूंगा....
@अर्श भाई आपको तो अभी बधाई देकर ही आया हूँ....तुकबंदी की तारीफ़ के लिए शुक्रिया...
@अपूर्व जी....ये आपने तारीफ़ की हे या...वाट लगाईं है....फिर भी मजा आगया...
@अल्पना जी...शुक्रिया
आप सब की प्रतिक्रिया बहुत दिनों बाद दोस्त मिलने जैसी ही रही ..दिल से अच्छा महसूस कर रहा हूँ....

के सी ने कहा…

प्रकाश जी,
मेरा कमेन्ट आपकी इस रचना या प्रस्तुति के लिए मात्र नहीं है.
ये तो ब्लॉग के जरिये हो रहे तरही मुशायरों में शामिल किये जाने वाले उन शेर के लिए हैं जिनको छापने वाले मोडरेटर भी जानते हैं कि उनका स्तर क्या है.
आपने जो गुलदस्ता पेश किया है उसमे कई फूल खूबसूरत ही नहीं वरन महक से भरे भी है ख़ास कर रिश्तों वाला शेर जो सब का दिल चुरा रहा है.
आपको याद होगा न कि हमारे शहर में हर साल के एल सहगल साहब को उनके जन्म दिवस पर किस तरह गाया और उनकी आत्मा को रुलाया जाता है, मैं सोचता हूँ की सहगल साहब ने ये तय कर लिया होगा कि अगला जन्म मिले तो कभी गाऊंगा नहीं. ठीक ऐसा ही स्तर तरही का हो गया है कमबख्त फ़ोकट का तंत्र है तो भी कुछ स्तर तो रखिये.

आपके लिए तो सिर्फ इतना ही था कि "फिराक साहब आपको गलियाँ दे रहे होंगे"

पंकज ने कहा…

बेहतर पोस्ट.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

रा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है
सयाने तो इसे पीने से पहले छान लेते है

वाह.....बिलकुल नया और अलग सा लगा ....!!

ख़ुशी करती अता ग़म का नजारा भी कराती तू
तुझे ऐ जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते है

वाह...वाह....ये तो लाजवाब लगा ......!!

लुटा सब आज हमने कौम के नेता चुने,चल फिर
बिछौना कर जमीं,तारों की चादर तान लेते है

प्रकाश जी हर शे'र लाजवाब है kiski तारीफ karun kiski n karun .....!?!

( haan nazmein padhne और दिल se की tippni ke लिए शुक्रिया...)

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! इस बेहतरीन और शानदार पोस्ट के लिए बधाई !

कडुवासच ने कहा…

... बेहद प्रसंशनीय !!!!!

daanish ने कहा…

ख़ुशी करती अता ग़म का नजारा भी कराती तू
तुझे ऐ जिन्दगी हम दूर से पहचान लेते है

huzoor !!
ye to gazab ki gir`haa lagaaee aapne...waah-wa .
aapki gzl padh kar bahut sukoon haasil huaa .
badhaaee .

Dr. Shreesh K. Pathak ने कहा…

उम्दा..भाई उम्दा..

Arshia Ali ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाव, बहुत ही शानदार प्रस्तुति।


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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।

गौतम राजऋषि ने कहा…

अरे वाह प्रकाश जी, ये तो खूब रही...

ये रिश्तों का पानी वाला शेर तो उफ़्फ़्फ़ क्या बुना है आपने।

वैसे किशोर जी की टिप्पणी पढ़ कर मजा आ गया। काश कि ऐसी टिप्पणी देने वाले और हो अपने इस ब्लौग-जगत में....तरही पे उनके विचार सुनकर अच्छा लगा। शायद इसलिये उन्होंने मेरी ग़ज़ल पे कुछ कहना उचित न समझा।

अपनी इन यात्राओं के स्म्स्मरण को जरूर उकेरें पोस्ट में। इंतजार रहेगा।

शोभना चौरे ने कहा…

जरा बेचूक हो पीना कि ये रिश्तों का पानी है
सयाने तो इसे पीने से पहले छान लेते है
बहूत खूब
खून के रिश्ते ही आँखों में पानी दे जाते है|

कविता रावत ने कहा…

खुदा,भगवान् से तू पूछ पाखी नाम पे तेरे
बनाए पाक मजहब क्यूँ किसी की जान लेते है?
Kesuron ke jaan ke dushmanon ki samajh mein kash ye baat aa jati to kitna achha ye jahan hota.....
Bahut sundar bhavoukti ke liye badhai

निर्मला कपिला ने कहा…

लुटा सब आज हमने कौम के नेता चुने,चल फिर
बिछौना कर जमीं,तारों की चादर तान लेते है

खुदा,भगवान् से तू पूछ पाखी नाम पे तेरे
बनाए पाक मजहब क्यूँ किसी की जान लेते है
वाह वाह क्या खूब कही । पूरी गज़ल ही लाजवाब है शुभकामनायें

shama ने कहा…

Zindagee ko door hee se pahchaan gaye! Bahut khoob!

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