सारे तरीके आजमा लिए थे ..
बस, एक सितारा नही तोड़ पाया
उस पार से किसीने किए थे इशारे काफ़ी
मैं बस यह किनारा नही छोड़ पाया
सपने भी थे ,थी मंजिले वहीं
जा रहे थे वहां कारवां कई
और ये मेरी बुजदिली थी कि
मैं एक आशियाँ नही छोड़ पाया
किसी ने रात के अंधेरे में
रोशनी उम्मीदों कि जला दी
जब जब जिन्दगी ने कदम थामे
उसने अपनी हर सांस जला दी
है खुदा की हर दर औ चौखट यहीं पे
है यही पे हर सजदे के निशाँ
किये थे उसने हजारों सजदे
और मेरे लिए दुआ मांगी थी
आज मैं फिर वहीँ आया हूँ
अपनी तक़दीर औ बुलंदी के साथ
उसनेफिर मेरा माथा चूमा
और फिर मेरे लिए दुआ मांगी
आज फिर रुक गया मैं उसी किनारे पे
जिसको मैं कभी भी न छोड़ पाया
सारे तरीके आजमा लिए थे
बस एक सितारा न तोड़ पाया
1 टिप्पणी:
बेहद सुन्दर कविता अगर इसको गीत कहें तो भी अतिशयोक्ति न होगी, कुछ बन जाने के जूनून के दिनों में सब कुछ कितना आसान था एक सुन्दर कविता लिखने जैसा दुष्कर काम भी. आज इसे पढ़ते हुए मुझे अपने तपते दिनों में आग उगलते कमरों से बिखरती दोस्तों की कहानियां और कवितायेँ याद आ गयी कुछ शामें भी याद आई जो चाय की दुकानों पर बीत जाया करती थी. आप प्रभावी लिखते है !
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