रविवार, 5 जुलाई 2009

भाई(विक्रम)और टल्ली (बेताल)



यह कहानी भाई लोगों की है।भाई लोगों ने अपने ब्लॉग को चलाने का काम मुझे सौंप दिया है.बदले में वे मुझसे हफ्ता नहीं वसूलेंगे.खैर, मैंने संजय से सलाह कर के काम ले लेने में ही अपनी खैर समझी.भाई लोगों को बता दिया कि टपोरी लेंग्वेज अपुन के बस की नहीं है.इसलिए हिंदी में ही लिखूंगा.ज्यादा भी नहीं लिख पाऊंगा क्योंकि ज्यादा समय भी नहीं है और अपने ब्लॉग के साथियों के लिए भी कुछ तो लिखना पड़ेगा.और यह भी समझाया कि अगर ज्यादा लिखा गया तो पाठक आपकी रचनाओं पर शक करेंगे कि भाई ने किसी और लिखवाया होगा. भाईलोगों ने मेरी बातों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करते हुए मुझे इसकी इजाजत दे दी.

भाई और टल्ली कि कथा ज्यादा पुरानी नहीं है.भाई कि गैंग का शूटर टिंकू टल्ली बोतलों पर निशाना लगाते लगाते बोतलों से दिल लगा बैठा.उसके बाद उसके कदम और निशाने दोनों चूकने लगे.अब भाई ही उसको संभालता था.एक दिन सर्किट टल्ली कि मौत कि खबर लाया तो सब सन्न रह गए.और उसके बाद वे अस्पताल गए तो यह सुनकर चकरा गए कि टल्ली कि बाडी(लाश) गायब हो गयी है.

रात होने तक खोजबीन चली.पुलिस ने रपट रोजनामचा गुमशुदगी डाल कर इतिश्री कर ली.पर भाई और सर्किट टल्ली के अंतिम संस्कार की टेंशन में अस्पताल के मुर्दाघर के पास पव्वा खोल कर बैठ गए. मुर्दाघर के पीछे के बरगद के पेड़ पर टल्ली नजर आया तो दोनों फिर चौंक गए.और उसके बाद जब टल्ली हवा में तैरता हुआ नीचे आया तो उनकी आँखे आर्श्चय से फटने लगी.भाई ने कहा कि वे तो उसके क्रियाकरम की फिकर कर रहे थे पर वह तो जिन्दा था.

टल्ली ने बताया कि वह अब बेताल बन गया है.हुआ यह था कि दारु पीकर ट्रक से भिड़ने पर टल्ली को मरकर यमलोक जाना था पर टल्ली दारु पीकर आज तक सही ठिकाने पर नहीं पहुंचा था तो यमलोक क्या पहुँचता.दारु के तस्कर जानी ने मुर्दाघर के बरगद पर स्मगलिंग की विलायती दारु छिपा रखी थी तो टल्ली वहां जा पहुंचा.

उधर यमलोक में वर्क लोड ज्यादा हो रहा था तो यमराज ने उसदिन सम मरने वालों की आमद रोजनामचे में दर्ज कर ब्रह्माजी को ईमेल कर दिया.थोडी देर बाद टल्ली भी यमलोक पहुंचा तो यमराज ने उसकी आमद कराने से इनकार कर दिया.
टल्ली भाई लोगों के साथ रह चुका था तो उसने तुरंत भूताधिकारों की मांग करते हुए यमराज की शिकायत ब्रह्माजी को करने की धमकी दी.साथ में सूचना के अधिकार के तहत पिछले पांच हजार वर्षों के रोजनामचे की प्रतिलिपियाँ मांग ली.सरकारी अफसर की तरह यमराज ने तुरंत समर्पण कर दिया और तरह तरह से उसको मनाने की कोशिश करने लगे.लम्बी उरूग्वे वार्ताओं के पश्चात् यमराज और टल्ली आखिर में गेट समझौते पर पहुंचे.समझौते की शर्तों के अनुसार टल्ली को ब्रह्माजी को शिकायत नहीं करनी थी बदले में यमराज ने टल्ली को बेताल अर्थात दुनिया के भूतो का शहंशाह बना दिया.बेताल एक मात्र भूत होता है जिसे अपने मानव शरीर के साथ रहने की इजाजत थी.उसके पास कई मायावी शक्तियां थी.
पर टल्ली बेताल की मजबूरी यह थी की वह अपने आप कहीं जा नहीं सकता था.हाँ,दुनिया के किसी कोने से उड़कर अपने आप अपने ठिकाने (बरगद के पेड़)पर आ सकता था.और हाँ, उसके पास वापस जिन्दा होने का अवसर भी था.अगर कोई व्यक्ति अमावस्या की रात को कापालिक शमशान में ले जाकर शव सिद्धि कर ले तो उसकी जान वापस आ सकती थी.
बाकी शर्ते विक्रम बेताल की तरह ही थी.बेताल को ले जाने वाला रास्ते में बोलता है तो बेताल वापस पेड़ पर पहुँच जाएगा.गलत उत्तर पर खोपडी के हजारों टुकड़े हो जायेंगें..इत्यादि.
सर्किट ने कहा कि रस्ते में नहीं बोलने वाली बात तक तो ठीक है.पर गलत जवाब देने पर खोपडी में ब्लास्ट हो जाने का मामला थोडा रिस्की है.उसने कहा कि टल्ली तो पहले से मरेला है..अब भाई को काहे को मरवाता है.

फिर भी भाई नहीं माना तो वह और पकिया रुस्तम को पकड़ लाये.भाई को एक मोबाइल और वाई फाई इअर फोन दिलवाया.अब टल्ली बेताल जो भी प्रश्न पूछेगा रुस्तम कि मदद से भाईलोग जवाब देने को तैयार थे.

पहली अमावस्या को भाई ने टल्ली को कंधे पर उठाया और कापालिक शमशान कि और चल पड़ा.

टल्ली बेताल ने अपनी कहानी आरम्भ की-सूरजपुर नाम के एक छोटे कसबे में रमेश नाम का एक युवक रहता था.उसके पड़ोस में रहनेवाली सरिता नाम की युवती से वह प्यार करता था.दोनों में दोस्ती हो गई.दोस्ती प्यार में बदल गई.लड़का बहुत समझदार और सुशील होने के कारण सरिता के माँ बाप को यह रिश्ता पसंद था.पर रमेश शादी से पहले अपने पैरों पर खडा होना चाहता था.

और एक दिन रमेश को एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में एक अच्छी नौकरी मिल गई.वे दोनों और उनके परिवार वाले बहुत खुश हुए.अब जल्दी ही उनकी शादी तय की जासकती थी.रमेश और रीना इस ख़ुशी को सेलिब्रेट करने के लिए कसबे से दूर बाईपास पर स्थित सबसे बढ़िया रेस्टोरेंट में डिनर का प्रोग्राम रखा..दोनों मोटर साइकल पर रवाना हुए.शहर से बाहर जाते समय आखिरी चौराहे पर सलीम नामक नाम का ट्रेफिक पुलिस वाला मिला हालांकि वह उन दोनों को जानता था फिर भी उन दोनों के हेलमेट न होने के कारण चालान काट कर जुर्माना कर लिया.वे दोनों फिर आगे बढ़ गए.शहर के बाहर एक्सप्रेस हाइवे पर दायीं ओर जाना था तो रमेश को जहाँ हाइवे शहर से आने वाली रोड से मिलता था वहां से क्रॉस कर दूसरी ओर अपनी लेन पकडनी थी.
तो भाई जब वे मोटर साइकल पर हाइवे के उस ओर जा रहे थे तो एक ट्रक वाला बड़ी तेज स्पीड से आ रहा था.दोनों ने उस ट्रक को हाथ से रुकने का इशारा किया...पर ट्रक वाले छोटी गाड़ियों की परवाह कहाँ करते है.,,
और...!
ट्रक ने उनके टक्कर मार दी.टल्ली बेताल ने अफ़सोस जताते हुए कहा.
बेचारे दोनों मारे गए. उनके घर की खुशियाँ मातम में बदल गयी.उनका प्रेम परवान नहीं चढ़ सका शादी की तारीख तय होने से पहले दोनों दुनिया से विदा हो गए.
पर भाई तू सच सच बता दोषी कौन था?
वह लापरवाह ट्रक ड्राईवर जिसने इशारा करने के बाद भी ट्रक को नहीं रोका.

या सलीम ट्रेफिक वाला जिसने बिना हेलमेट उन दोनों को आगे जाने दिया.

या रमेश जो बिना हेलमेट हाइवे पर जाकर दोनों की जान खतरे में डाली.

भाई जो तू सही सही नहीं बोला तो तेरी खोपडी के हजार टुकड़े हो जायेंगें.

अब मेहरबानों कद्रदानों आपकी मदद की जरूरत है...रुस्तम सर्किट पकिया और भाईलोग मोबाईल आन करके भाई(विक्रम)की मदद को तैयार खड़े है...हो सकता है आपके सही जवाब से भाई की जान बच जाये..
(जवाब आखिरी टिप्पणी में मिलेगा. सही जवाब उम्मीद करता हूँ कि आपको आपकी टिप्पणियों में मिल जाएगा..वर्ना मैं बताने का प्रयास करूंगा.
मित्रों! हमारे देश में सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष एक लाख दस हजार लोग मारे जाते लगभग पांच लाख लोग घायल होते है...पन्द्रह हजार करोड़ का अनुमानित राष्ट्र को प्रतिवर्ष सम्पति की हानि होती है..
शायद हमारी कुछ जिम्मेदारी बनती है...इसलिए मैं छोटा सा प्रयास कर रहा हूँ..आपके सुझावों और की आवश्यकता होगी.
आप अपने सुझाव ईमेल से भेज सकते है.कई बार गंभीर विषयों पर गंभीर चर्चा बोझिल हो जाती है इसलिए मैंने इस विषय को हल्के फुल्के ढंग से कहने का प्रयास किया है.मूल प्रश्न यही है कि हम एक नागरिक के रूप में इतने अधिक लापरवाह क्यों हो जाते है कि अपनी जिन्दगी को खुद खतरे में डालकर दूसरों की गैर जिम्मेदारी तलाश करने की कोशिश करने लगते है.एक सड़क दुर्घटना एक परिवार की जिन्दगी हमेशा के लिए बदल देती है.इसमें खोई हुई चीजें कभी वापस नहीं मिलती है.फिर हम क्यों हेलमेट सीट बेल्ट को ट्रेफिक पुलिस की जिम्मेदारी समझते है.

मैं जब छोटा था तो मेरे दादाजी हर पल मेरा ध्यान रखते थे.सारे संभावित खतरों से मुझे दूर रखने का प्रयास करते थे.मेरा स्वयम का भी यह मानना है कि किसी भी खतरे से खुद को बचाने वाले पहले व्यक्ति हम स्वयम ही हो सकते है. आपका सहयोग मिला तो इस तरह की और भी पोस्ट लिखने का प्रयास करूंगा.-
प्रकाश)

10 टिप्‍पणियां:

sanjay vyas ने कहा…

गलती पर तो ट्रक वाला लग रहा है क्योंकि हेलमेट पहना होने पर भी ट्रक की टक्कर घातक ही रहती.
वैसे last laugh तो आप का ही रहेगा:) टिप्पणियों और जवाबों का इंतज़ार रहेगा.साथ ही आपका अंतिम कथन महत्वपूर्ण होगा.
एक अत्यंत रोचक विधा में सड़क सुरक्षा का सबक देने का प्रयास.

soniakumari ने कहा…

बहुत रोचक तरीके से उपयोगी जानकारी देने का प्रयास है..अच्छा लगा.
मेरे विचार से गलती मोटर साइकल चालक की है...उसे आगे जाना नहीं चाहिए था

soniakumari ने कहा…

और हाँ,ऐसी उपयोगी पोस्ट आगे भी जरूर दे.

शोभना चौरे ने कहा…

ak bhut achhi post .bhuthi achhe tarike se itni ghri bat ko sbke samne rakh diya .na jane itni savdhani aur sadhan hone ke bavjud uyva log apni kimti jan kyo jokhim me dalte hai |aapne pucha glti kiski hai .to mai to khugi trefik polic ki hai .

Urmi ने कहा…

आपने इतना बढ़िया लिखा है की क्या कहूँ! बहुत ही गहरी बात कह दी और सिर्फ़ इतना ही नहीं काफी जानकारी भी प्राप्त हुई! कोई भी गाड़ी चलाने के वक्त बहुत ही सावधानी से चलानी पड़ती है ताकि अपनी जान जोखिम में न डाले और किसी और की जान भी न जाए!

के सी ने कहा…

हास्य के मुखोटे से आपने गंभीर प्रश्न को प्रस्तुत किया है, पोस्ट को पढ़ना आरम्भ किया वहां से लेकर अंत तक रंग बदलते रहे. ऐसा भी लगा कि एक ही पोस्ट में कई पोस्ट समां गयी हैं. भाषा और विषय वस्तु के बारे में कुछ कहना बेमानी होगा हमेशा जबरदस्त.

Akanksha Yadav ने कहा…

Itna sundar ki shuru kiya to ant tak padh dala...lajwab !


"शब्द-शिखर" पर आप भी बारिश के मौसम में भुट्टे का आनंद लें !!

गौतम राजऋषि ने कहा…

इस अद्‍भुत शैली ने अचंभित क्या प्रकाश जी...आपकी हिंदी के तो हम कायल हैम ही...

दिलचस्प विवरण!

अजित वडनेरकर ने कहा…

सार्थक पोस्ट। दिलचस्प भी।

shantanu ने कहा…

मजेदार व्यंग्य, गंभीर सन्देश...