सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

आधुनिक भक्ति वेदान्त का शेयर कर्म योग



अर्जुन उवाच-

हे जनार्दन,हे,केशव!जब आप घर बर्बाद करवाने और दिवालिया हो जाने के साधनों में अन्य कई प्रकार के साधनों को भी श्रेष्ठ मानते है,तो फिर मुझे शेयर बाजार में पैसा लगाने के घोर कर्म में क्यों लगाना चाहते है.आपके अनेकार्थक मिले जुले उपदेशों से मेरी बुद्धि मोहित हो गई है.अत:आप मुझे निश्चय पूर्वक मुझे बताएं कि इनमे से मेरे लिए सर्वाधिक बर्बादीप्रद क्या होगा.ताकि में शीघ्रातिशीघ्र रोड पर आसकूं.
श्री भगवानुवाच-

हे निष्पाप अर्जुन!मैं पहले ही बता चुका हूँ कि आत्म बर्बादी का प्रयत्न करने वाले दो प्रकार के पुरुष होते है.कुछ लोग जुआ सट्टा योग से इसे समझने का प्रयत्न करते है तो कुछ शेयरबाजार के द्वारा.न तो कोई जुए से विमुख होकर एक पल भी रह सकता है न ही सट्टे के बिना.प्रत्येक व्यक्ति को अपनी प्रकृति से अर्जित गुणों के अनुसार जिन्दगी भर जुआ खेलना पड़ता है और हारना पड़ता है.कोई व्यक्ति वोट के रूप में नेता पर जुआ खेल कर बर्बाद होते है.तो कोई अपने बच्चों पर दांव लगा कर बर्बाद होता है.सरकारी अफसर चुनावों में नेताओं पर दांव लगाते है.ट्रांसफर और पोस्टिंग पर जुआ खेला जाता है.लाटरी और क्रिकेट का सट्टा तो तुम जानते ही हो.इन सट्टो पर न केवल बर्बादी बल्कि उसके साथ पुलिस का फट्टा पड़ने का भी भय होता है.परन्तु हे निद्रा जयी अर्जुन!शेयर बाजार ऐसा सट्टा है जिसमे पुलिस का फट्टा नहीं पड़ता है।

जो व्यक्ति यह कहकर कि मैं सट्टा नहीं खेलता परन्तु मजबूरी में जुए का शिकार होता है वह मिथ्याचारी कहलाता है।

एक किसान खेती का जुआ हर साल खेलता है.एक वोटर प्रगति और विकास का जुआ खेलते हुए जिन्दगी भर नेताओं को वोट देता रहता है.एक फरियादी न्याय का जुआ खेलता है और सालों तक हारता है.एक आदिवासी पर्यावरण पर पैसा खाने वाले एन जी ओ के शिकार होकर जुआ खेलते है.मीडिया खबर बनाने का जुआ खेलता है. जीवन में हर वक्त हर व्यक्ति के लिए कोई न कोई जुआ सामने होता है...वह चाहे उसे खेले या नहीं उसका हारना तय है.इसलिए तू जुआ खुल कर खेल और शेयर में पैसा लगा।

जब से हमारे देश में नेताओं के लिए लोक तंत्र आया है तब से बड़ी बड़ी कम्पनियों की पौ बारह हो रही है...तू बड़े बड़े उद्योग पतियों के कल्याण में ही अपना कल्याण समझ.शेयर बाजार एक ऐसा जरिया है जहाँ तू और तेरे जैसे लाखों लोग तत्काल अपनी पूँजी गँवा सकते है.तू जुआ खेल तभी ही तू बर्बाद हो पायेगा.एक बार बर्बाद होने के बाद तुझे संसार मोह माया से विरक्ति होगी.जिससे तेरा कल्याण होना शुरू हो जाएगा।

तेरे शेयर कर्म से ब्रोकर और बिजनेस चेनल प्रसन्न होंगे,जिससे कम्पनिया बिना कुछ किये लोगों के पैसे कानूनी तौर पर हडप सकेंगी.इससे देश के कुछ और उद्योगपति फ़ोर्ब्स की सूची में आ जाएंगे..और देश के करोड़ों लोग गरीबों की रेखा रुपी सूची में आ जायेंगे.बिजनेसमेन प्रसन्न होने तो वे नेताओं को प्रसन्न करेंगे और नेताओं के प्रसन्न होने से ही हमारे देश में सच्चा लोक तंत्र आएगा।

जो व्यक्ति देश के नेताओं और उद्योगपतियों को खुश रहने में बाधा उत्पन्न करता है उस पर देवता कभी प्रसन्न नहीं होते है.वह निश्चित ही अनाधिकार भोगने वाला चोर है।

किन्तु हे प्रिय अर्जुन!जो व्यक्ति श्रद्धा पूर्वक शेयर बाजार में अपनी समस्त पूँजी लगाता है.वह आत्म बर्बादी के चरम साक्षात्कार को प्राप्त होता है.और उसकी समस्त पूँजी ठीक वैसे ही ब्रोकरों और और फर्जी कम्पनियों द्वारा खींच ली जाती है जैसे वेक्यूम क्लीनर धर के कचरे को खींचता है.उसके बाद उसके पास इस संसार में करने योग्य कुछ भी शेष नहीं रह जाता है.इसलिए तू अनासक्त भाव से शेयर बाजार में पूँजी लगा।

तू निश्चित ही बर्बाद हो सकेगा.ऐसा मेरा विश्वास है।

(इस प्रकार आधुनिक भक्ति वेदान्त का शेयर कर्म योग नामक अध्याय पूर्ण हुआ )

10 टिप्‍पणियां:

vijayprakash ने कहा…

वाह प्रकाश जी, आनंद आ गया, गीता के तीसरे अध्याय की आधुनिक व्याख्या पढ कर.

shilpi ने कहा…

BEHTREEN TAREEKE SE VISANGTIYON KO UBHAARA HAI...

अपूर्व ने कहा…

सर जी लंबे समय से प्रवचन के अगले भाग की प्रतीक्षा कर रहा था..आपने भ्रष्टभक्तों की पुकार सुनी उसके लिये धन्यवाद..विस्तार से बाद मे कहूँगा..मगर गीता के समस्त अध्यायों के प्रिंटआउट ले कर संग्रहीत करने व अपने पिताजी को इनकी विशदता से अवगत कराने की इच्छा है..शुक्रिया

Unknown ने कहा…

हुकुम,
जोरदार अभिव्यक्ति है..व्यंग्य पैनापन लिए है और बहुत कुछ खरा खरा कहता है.
भवानी

Unknown ने कहा…

Agle ahdhyaay ka intjaar hai..madhusoodan!

sanjay vyas ने कहा…

यूँ बीच बीच में कुछ और देते रहे सो प्रवाह में बाधा पड़ी पर अब लगता है भक्त लोग इसका नियमित श्रवण कर सकेंगे.

के सी ने कहा…

प्रकाश जी, आपके शब्दों और शिल्प की ताजगी में अनुभव करता हूँ कि कभी नियम से अपनी व्यस्तताओं के बीच अगर इसे अलग से लिख पाएं तो ये एक ऐसी कृति होगी जिसे पढ़ कर पाठक रस और अनुभव से भर उठेगा. मेरे इस बेहद निजी सुझाव पर आप गंभीर हो कर विचार करेंगे इसी आशा में हूँ. मैं आपकी नौकरी की प्रवृति और व्यवस्था में खड़े ठूंठों को भली भांति ना जानता होऊं मगर उनकेबारे में कुछ अनुमान है फिर फिर एक मित्र कि अपेक्षा तो है ही.

निर्मला कपिला ने कहा…

अज का अध्याय पढ कर लगता है कि अब पिछले दो अध्याय भी पढने पडेंगे। इतने सुन्दर ग्यान से वँचित कैसे रह सकती हूँ बहुत अच्छा व्यंग है। धन्यवाद्

ghughutibasuti ने कहा…

वाह, क़्या जबर्दस्त ग्यान की प्राप्ति हुई है, मैं तो चली शेयर खरीदने.
घुघूती बासूती

स्वप्न मञ्जूषा ने कहा…

bahut hi badhiya gyan mila hai hamein..
bas afsoso ye hai ki der ho gayi hamein gyan prapti mein..:)