मंगलवार, 28 अप्रैल 2009

भाईलोग-पीकेभिडे.ब्लागस्पाट.कॉम

"ऐ सर्किट,क्या है की अब अपुन भाईलोगों को भी कुछ आगे का सोचना चाहिए." भाई ने पूरी संजीदगी से कहा.

"भाई एकदम सच बोला,पण अपुन तो पहले से ही सोचता है...क्या कोई लफडा हुआ..."



"नहीं रे ...मेरा मतलब दुनिया बदल रही है..अपुन लोग पिछड़ रेले है.."


"हाँ,भाई मुझे भी ऐसा इज लगता है,पिछले साल मार्च क्लोजिंग में अपुन ने सतरा पंगे किये,इस बार पांच ही हुए,पिछली बार बीस दिन जेल में रहे इन बार हफ्ता भी नहीं..और माल भी कुछ ख़ास नहीं मिला..बिजनेस बिलकुल ठंडा पड़गया है भाई,लगता है कि इन्टरनेशनल मंदी का अपुन के धंदे पर असर हुआ है भाई...."

"सर्किट, पूरी बात नहीं सुनी तो लाफा खायेगा..."


"बोलो भाई...अपुन सुन रेला है..."


"क्या है कि सर्किट अब टाइम आ रेला है कि अपुन भाई लोग भी टेकनीक से चलें..."भाई कह रहा था और सर्किट मूर्खों कि तरह पलके झपका रहा था.


"क्युकी अब दुनिया में सारी लफडे बाजी एकदम फास्ट हो रे ली है.." भाई बोला.

"भाई अपुन के भेजे में कुछ नहीं घुस रहा है...सीधा बताओ करना क्या है."

"देख सर्किट,अपुन भाई लोग पहले रामपुरी से शुरू हुए थे..फिर घोड़ा आ गया,और आजकल नया टपोरी भी ऐ के रखता है..बोल है कि नहीं..?इसे कहते आई टी..."

"बात तो एकदम सही है भाई,पर अपुन टेक्नीक आई टी कैसे बनेगा...?"


"देख अपुन को बड़ा आदमी बनने का है....."


"भाई इसमें क्या बड़ी बात है,शाम को गले से नीचे दो घूँट उतारते ही अपुन को लगता है कि अपुन बहुत बड़ा आदमी बन गया है.."


"सर्किट तेरे भेजे का सर्किट काम नहीं कर रहा है..बड़ा आदमी मतलब अमिताभ शाहरुक सचिन...माने कोई लीडर कोई खिलाडी ,कोई राइटर कोई स्टार...सब के सब ब्लॉग लिखने लग गए ...अपुन को भी बड़ा आदमी बनने का है तो ब्लॉग बनाना पड़ेगा..."


"भाई तुम बोलो किसका बनाना है...? वो क्या कहते है ब्लॉग...अपुन साला शाम से पहले कट टू कट बना डालेगा."


"नहीं बे सर्किट, किसी आदमी को नहीं बनाना है...ब्लॉग बनाना है.."

"क्या ये मामू बनाने जैसा कुछ है..."

"नहीं यार,यह कुछ साला लिखना पड़ता है..."

"तो दिक्कत है भाई.?"

"दिक्कत है सर्किट....सुना है ब्लॉग इन्टरनेट पर बनता अपुन को साला पता इज नहीं कि इन्टरनेट कहाँ मिलता है.."

"भाई टेंशन नहीं लेने का,जिस को भी पता है अपुन उसको एक कलाक में भाई के सामने ले आएगा...चल बे पकिया मोटर साइकल निकाल..."

सर्किट और पकिया शहर को निकल जाते है.

"अरे सर्किट रुक...रुक..वो देख ...इन्टरनेट जैसा कुछ लिखेला है...बाप."

दोनों साइबर केफे में घुस जाते है.

"अबे साले इसका मालिक तू है क्या..."पकिया घोड़ा निकाल कर उसके सर पर रखता है.

"क्या तेरे कू पता है इन्टरनेट कहाँ मिलता है?" सर्किट ने पूछा.

"हाँ..ह ..हाँ ..सर.!"

"भाई सुन, अपुन और पकिया यहाँ खड़े है..अपुन को इन्टरनेट मिल गया...पुलिस चौकी कि बाजू वाली गली में सीधा जेल की तरफ जो रास्ता जाता है बस, उस पर तीसरी दूकान है..भाई..!"


भाई लोगों ने दुकान का सारा सारा सामान उठा लिया.उसके मालिक सहित अड्डे पर ले आये.

"अबे बता इन्टरनेट कैसे मिलता है?नहीं तो अपुन का घोड़ा गोली को भेजे में मिला देगा."

उसने मॉनिटर कि और इशारा किया.

"भाई ये अपुन को मामू बना रहा है, टी वी को इन्टरनेट बता रहा है भाई...पकिया इसको पकड़ ,अभी कट टू कट साइज करता हूँ."

"नहीं..नहीं ..सर..इन्टरनेट इस पर ही चलता है..आप कहें तो चला कर दिखादूं.."

"सर्किट छोड़ उसे.."

"अबे तू यह बता ब्लॉग इन्टरनेट पर कैसे लिखते है...?"

वह भाई को पूरा समझाता है.


"भाई यह तो बहुत गोलमाल है....कहीं मामू तो नहीं बना रिया है."

"सर्किट छोड़ दे उसे ...अपुन सब समझ गया है.

"पकिया भाई जब सब समझ जाता है तो समझो कोई लोचा होनेवाला है.अपन को पहले ही कुछ करना पड़ेगा."सर्किट बोला.


पकिया भागता हुआ सर्किट के पास पहुंचा.


"सर्किट, भाई का खोपडा सटक गया लगता है..उसने अभी अभी तीन इन्टरनेट फोड़ डाले..अपुन ने रोकना चाहा मैंने लाफा पड़ गया."वह अपने गाल सहला रहा था.


सर्किट भाग कर अन्दर जाता है.और फिर घोड़ा चला कर बाकी बचे दो मॉनिटर भी तोड़ देता है.

"भाई इसके लिए इतनी तकलीफ क्यूँ किया..अपुन हैं न ..अपुन को बोला होता अपुन सुबह ही फोड़ डालता” ...


भाई ब्लॉग न लिख पाने कि विवशता के मारे गंभीर चिंतन कि मुद्रा में बैठा था.


"भाई अगर अपुन कि बात मानो तो अपुन एक बात बोलूं ..तू लाफा तो नहीं मारेगा?" सर्किट बोला.


"नहीं,..बोल."

"ये साला इन्टरनेट टेक्नीकलर अपुन भाई लोगों के बस का नहीं है...भाई बोले तो अपुन साला किसी एक्सपर्ट को उठा लाये..और भाई कहे वैसा ब्लॉग लिखवा डाले.."


"सर्किट क्या धांसूं आइडिया बताया है..अब बता इसका साला एक्सपर्ट कौन है.."


"भाई दो रात से अपुन साला ये इज कर रिया है..अपुन ने पता लगा लिया है कोई आशीष खंडेलवाल और बी एस पाबला ब्लॉग के एक्सपर्ट है...."


"सर्किट,उनको अभी का अभी उठा ले आ..."


"भाई, नाराज मत होना... पर अपुन के होते हुए भाई को क्या टेंशन ? अपुन दो दिन पहले ही उनको ले आया...उनको बोरे में बंद कर रखा है..भाई बोले तो ले आऊँ...जा पकिया दोनों को ले आ."


"खंडेलवालजी और पाबला जी ने मोबाइल और लैपटॉप पर इन्टरनेट जोड़ कर भाई लोग का ब्लॉग क्रिएट किया-


भाईलोग-पीकेभिडे.ब्लागस्पाट.कॉम


खंडेलवालजी ने कई विजेट और युक्तियाँ जोड़ी...पाबला जी ने कई सांख्यिकी के लिंक जोड़े.ब्लॉग वाणी और चिट्ठाजगत से लिंक किया.
हेडर में ऐ के ४७ और एम् पी ५ के बीच घोड़ा(देसी कट्टा) और रामपुरी की फोटो लगे गई.

भाई की झकास फोटो प्रोफाइल में सेट की.

ब्लोग्वानी चिटठा जगत और एनी कई लिंक जोड़े गए.

पहली पोस्ट लिखी गई--

झावेरी बाजार का हफ्ता..

आज अपुन ने झवेरी बाजार में हफ्ता वसूलने के लिए पकिया को भेजा...पकिया वहां के नए भाई से पिट के आगया.पता चला की सेठ दानापानी ने अपुन से कम रेट में नए भाई को हफ्ता देना तय किया है.

अपुन दानापानी सेठ को खुल्ला लिखता है कि आज शाम पांच बजे तक एक खोखा पहुंचा दे वर्ना कट टू कट साइज बराबर करके दानापानी बंद कर दूंगा.

"पर सर्किट, ब्लॉग वाणी और चिटठा जगत पर अपनी पोस्ट पढेगा कौन?"

"भाई,अपुन है न ..अपुन ने शहर के सभी इन्टरनेट पर अपुन के आदमी लगादिये है.जो भी इन्टरनेट पर काम करने आता है उसके कान पर घोड़ा रख कर सबसे पहले उससे ब्लॉग वाणी और चिट्ठाजगत पर पसंद पर क्लिक करने को कहते है...बाई अपन कि पोस्ट फर्स्ट चल रे ली है..एक घंटे में ३४५ लोगों ने पसंद किया है..भाई."

तभी भाईलोग के ब्लॉग पर एक टिप्पणी आती है -इस पोस्ट को पसंद करने वाले फर्जी लगते है...क्योंकि कोई टिप्पणी नहीं दे रहा है.

भाई का पारा सातवें आसमान पे पहुँच गया.पर सर्किट ने उसे शांत किया.दो भाईलोगों को इस काम पर लगाया कि यह टिप्पणी किसने की इसका पता लगाए.

सर्किट ने ताऊ को एक सात फुट का लठ भेंट किया क्यूंकि उसे पता था हरियाणा में भाई गिरी नहीं ताऊ का लठ चलता है..तो ताऊ ने भी भाई को आर्शीवाद में राम राम कि टिपण्णी भेजी.

सर्किट किशोर, संजय और प्रकाश के पास पहुँच गया.बताने कि बात नहीं कि उसने क्या किया तब से अब तक टिप्पणियों की संख्या भाईलोग के ब्लॉग पर बढती जारही है.





10 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

ha ha bhilogo ka blog achchha laga sundar...
vinati ajmera

के सी ने कहा…

शैली पर आपकी पकड़ ने तो दीवाना किया ही है आश्चर्य तो आपकी विस्तार क्षमता को देखा कर हुआ. पोस्ट को पढ़ते समय लगता रहा कि आगे क्या ? लेकिन आपने कहीं भी मुझे निराश नहीं किया.

sanjay vyas ने कहा…

किशोर भाई की टिपण्णी+झक्कास!

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

अब तो टिप्पणी करने में ही अपनी भलाई है;))

शुभ चिन्तक ने कहा…

इस बार एक शानदार स्किट ले कर आये पर आप ये बताएं कि आशीष जी और पाबला जी ने ब्लोगिंग में ऐसा क्या तीर मारा है? गूगल सर्च पर जायेंगे तो पाएंगे कि इनकी पोस्ट हमेशा कहीं न कहीं से प्रेरित होती है समझदारी इनकी ये है कि अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी किसी पोस्ट का हिंदी अनुवाद अपने शब्दों में करते हैं, इनकी ऐसी क्या प्रतिभा है? मुझे तो समझ नही आई रही ताऊ के लट्ठ की बात तो कभी उनका ब्लॉग ध्यान से देखिये वहा आपको ज्ञान नही मिलेगा हमें ज्ञान चाहिए भी नही और मसखरा भी हो तो कुछ स्तर का तो हो इन मसखरों में ऐसी कोई योग्यता नही है ये सब आगरा के ताजमहल के आगे खड़े टूरिस्ट गाईड हैं जिनका ताजमहल का ज्ञान पांचवी पास बच्चे जितना ही है. टिप्पणी कार चाय की होटलों पर बैठे आडवानी और मनमोहन सिंह को सीख देने वालों से किसी भी रूप में भिन्न नही हैं जबकि खुद के घर में शायद बीवी बच्चे भी नही सुनते होंगे.
आपकी पोस्ट का अंत बड़ा ही निराशाजनक है ये शायद टिप्पणियों की चाह का बोझा है जो पोस्ट उठा नहीं पाई.

rajkumari ने कहा…

आपका विनोद पूर्ण आलेख दिन भर के ज्ञान ज्ञान के खेल के बीच ठंडी हवा का झोंका है, कुछ तारीफों के पुल भी हैं भी देखती हूँ कि क्या खूबियाँ है वहां.

प्रकाश पाखी ने कहा…

मेरे आदरनीय शुभ चिन्तक,मुझे बहुत ख़ुशी हुई आपकी टिप्पणी पाकर ....!आपने इस पोस्ट पर इतना विचार किया इसमें इसकी सार्थकता है....मेरे लिए कोई मायने नहीं की ब्लॉग में किस को किस चरित्र में उतारा जाए...मैं तो सिर्फ एक ऐसी रचना लिखना चाहता था जो मुझे और इसको पढने वालों को अच्छी लगे....मुझे ब्लॉग जगत में कुछ ऐसे पात्र अपनी रचना के लिए चाहिए थे जो रचना को जीवंत कर सकें,उसमे से जो मुझे उपुक्त लगे उनकों मैंने चुना मेरे विचार से यह मेरे रचना कर्म की स्वंत्रता में आता है.....आपकी असहमति मेरे लिए sammanniya है....और यह ही मेरी उपलब्धि है.....अगर आप रचना के उद्धेश्य्पूर्नता और सार्थकता पर विचार करेंगे तो शायद मेरी पंक्तियों की कमियां इतनी . अखरने वाली न लगे

बेनामी ने कहा…

हा हा, मज़ा आ गया आपकी शैली से।

आपकी यह पोस्ट तो अचानक ही, अपना नाम गूगल में डालने से मिली।

भई आपके उस शुभचिंतक जी जैसे हम भी कहना चाहते हैं कि हम कोई एक्सपर्ट-एक्सवर्ट नहीं हैं। अभी तो हम सीख रहे हैं, रोज ही कुछ ना कुछ नया सीखते हैं। हाँ उनकी यह बात तो सरासर खीझ का परिणाम लगती है कि किसी की अंग्रेजी पोस्ट का अनुवाद होती है मेरी पोस्टें।

यदि यह शुभचिंतक अपने चेहरे के साथ अपनी बात को सिद्ध करने की हिम्मत करें तो मानूँ।

बहरहाल आप तो लिखते रहिये जी।

Udan Tashtari ने कहा…

मस्त है मगर आश्चर्य भाई लोगों का ब्लॉग ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत पर आया और हमारी स्वागत टिप्पणी नहीं मिली..हद है भई. खुद को लानत भेजने का दिल हो रहा है. :)

Publisher ने कहा…

bahut hi shandaar likha aapne prakash ji. dono digaaj hain. shukria achhi post padhwane ke liye.