शुक्रवार, 19 जून 2009
वो राग रागिनी सी चंचल
वो राग रागिनी सी चंचल
झंकृत मन को कर देती
बाला कहाँ सुरा तीव्र है
मदमय तनमन जीवन देती
स्वप्न लगे कभी सत्य लगे
जो क्षण क्षण सरगम बजती
सुरमय तपते अधरों पर
जब थरथर वीणा सजती
शांत सरोवरों की हलचल
बन किसी किनारे चल देती
वो राग रागिनी सी चंचल
झंकृत मन को कर देती
उठती उमंग मन लहरों सी
जब झलके मुख उस प्रतिमा का
निज प्रेम जहाँ तक प्रसरित है
है पता नहीं उस सीमा का
वह घटा बरसती जो दो पल
मेरा जीवनघट भर देती
वो राग रागिनी सी चंचल
झंकृत मन को कर देती
नदियों की धारा सी निर्मल
वो रूप षोडशी सागर सी
पत्तों पर बूंदों सी बहकर
अधजल छलकी गागर सी
वो प्रेम सरिता की कलकल
तन मन पावन कर देती
वो राग रागिनी सी चंचल
झंकृत मन को कर देती
पाखी
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
21 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर शब्दों में कविता लिखी है....
हिंदी गीतों की मंद होती धारा में आपने जैसे वेग प्रदान कर दिया हो.बढ़िया. इस श्रंखला को कुछ और चलाएं.
waah mazaa aa gaya
सुंदर शब्दों से सजी कविता ...अच्छा प्रयास...!
भाई साहब ,
बहुत सुन्दर कविता लगी....पढ़कर अच्छा लगा
समर्पण के भाव को सुन्दरता से व्यक्त किया है...
सुन्दर गीत रचना है कविता से थोड़ा आगे किन्तु दिल के बहुत पास
संजय जी की फरमाईश के साथ मेरा भी स्वर मिला हुआ समझाने का कष्ट उठाया जाये. बधाई
वो राग रागिनी सी चंचल
झंकृत मन को कर देती
khoobsurati se likhi khoobsurat rachana.
alnkaro se bhrpur
नदियों की धारा सी निर्मल
वो रूप षोडशी सागर सी
पत्तों पर बूंदों सी बहकर
अधजल छलकी गागर सी
sundar rachna .
हिन्दी के क्लासिकल टच वाला गीत अंलकारों / उपमाओं से भरपूर बाला के सौन्दर्य में चार चाँद लगा देता है।
सुन्दर, सुखद रचना।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बेहतरीन प्रवाहमय गीत!!
नदियों की धारा सी निर्मल
वो रूप षोडशी सागर सी
पत्तों पर बूंदों सी बहकर
अधजल छलकी गागर सी
सुन्दर गीत रचना ....!!
आपने बहुत सुन्दर गीत लिखा है. इसने मेरे मन को छु लिया है. ऐसे ही लिखते रहने की शुभकामनाएं.
bahut sundar .... shabd nahi hai aapki taarif karne k liye....
बहुत ही सुंदर कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
Uncle! Itna sundar kaise likhte hain ap.
स्वप्न लगे कभी सत्य लगे
जो क्षण क्षण सरगम बजती
सुरमय तपते अधरों पर
जब थरथर वीणा सजती
Bahut shaandaar .....dil ko chhoo lene wali lines hain..........
ati sunder kavita
स्वप्न लगे कभी सत्य लगे
जो क्षण क्षण सरगम बजती
सुरमय तपते अधरों पर
जब थरथर वीणा सजती
......................
hindi ke shabdo ko agar kisi bacche ke khilono ke saath saja diya jaaye aur dikhaya jaiye jamane ko....
...to jamane ko bacche ki khushi se pyar bhi hone lagega aur apne pachpan khone ka rashk bhi !!
abhipray ye hai ki bahut dino baad hindi ki itni acchi kavita padhi...
...mast !!
aur haan apka profile bhi accha hai...
"21 ki phool 25 ki maala...
...jalne wale tera muh kala !"
सुमधुर गीत ,
बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
Atyant bhavpurn aur sundar abhivyakti.
पापा के उस प्यारे से खत के बाद अब लौटा हूँ आपके ब्लौग पर...नुकसान मेरा ही है। पह्ले तो एक लाजवाब तरही के लिये सैकड़ों बधाई...वाकई!
और ये कविता खूबसूरत बन पड़ी है। नीचे में लिखा हुआ "पाखी" उलझा गया।
"उठती उमंग मन लहरों सी जब झलके मुख उस प्रतिमा का / निज प्रेम जहाँ तक प्रसरित है
है पता नहीं उस सीमा का"
बहुत सुंदर पंक्तियां!
बहुत ही सुन्दर गीत लिखा है यह...शब्द संयोजन बहुत अच्छा लगा.
एक टिप्पणी भेजें