सोमवार, 21 सितंबर 2009

प्रतियोगिता परीक्षा का भक्ति वेदान्त -अध्याय २


संजय उवाच
करूणा से व्याप्त,शोकयुक्त अश्रुपूरित नेत्रों वाले अर्जुन को देखकर मधुसूदन कृष्ण ने ये वचन कहे।
श्रीभगवानुवाच-
हे अर्जुन!तुम्हारे मन में यह कल्मष कैसे आगया?यह उस पी सी एस एस्पैरेंट के तनिक भी अनुकूल नहीं है जो प्रतियोगिता का मूल्य पहचानता है.इससे केवल अपकीर्ति ही प्राप्त होती है.हे पार्थ!यह हीन नपुंसकता तुम्हे शोभा नहीं देती है.हे परन्तप!ह्रदय की क्षुद्र दुर्बलता को त्याग कर परीक्षा देने के लिए खड़े हो जाओ।
अर्जुन उवाच-
हे मधुसूदन!हे अरिसूदन!इस परीक्षा में मेरे पितामह तुल्य भीष्म अपना चौहदवा अटेम्प्ट दे रहे है.मेरे कालेज के केमिस्ट्री के लेक्चरार श्री द्रोन अपना दसवां अटेम्प्ट दे रहे है.ऐसे पूजनीय व्यक्तियों के साथ मैं कैसे परीक्षा दूंगा?ऐसे महापुरुषों जो मेरे गुरु है और जिनके प्रक्टिकल में दिए नंबरों की वजह से मैं बी एस सी पास कर पाया हूँ,भले इसकेलिए मुझे उनका ट्यूशन करना पड़ा था.उनको बर्बाद कर सरकारी अफसर बन रिश्वत खाने से अच्छा है कि कोई कमिशन एजेंट बन सरकारी योजनाओं में कमिशन खाएं और खिलाएं.भले ही वे भी सांसारिक लोभ वश अफसर बनना चाहते है फिर भी मेरे गुरु है.मैं यह भी नहीं जानता कि मेरे लिए श्रेष्ठ क्या है उनको इस कम्पीटीशन में सलटा कर ट्यूशन के अत्याचारों का बदला लेना अथवा इस बार का अटेम्प्ट फोर्गो करना.अपनी कार्पण्य दुर्बलता के कारण मैं अपना कर्तव्य भूल चूका हूँ और धैर्य खो चूका हूँ.ऐसी अवस्था में मैं आपसे जानना चाहता हूँ कि मेरे लिए श्रेयस्कर क्या है वह मुझे निश्चित बताएं.मैं आपकी शरण में आया हूँ इसलिए आपका शिष्य हूँ.मुझे आप उपदेश दें.मुझे कोई ऐसा साधन दिखाई नहीं पड़ता जो मेरी इन्द्रियों को सुखाने वाले इस शोक को दूर कर सके।
संजय उवाच-
इस प्रकार कहने के बाद परन्तप अर्जुन कृष्ण से बोला ''हे गोविन्द !मैं परीक्षा नहीं दूंगा.''यह कहकर निश्चित ही चुप होगया.हे राजनेता,उद्योगपति और मीडिया की भारतीय विशेषताओं और गुणों की खान, भारतवंशी धृतराष्ट्र! उस समय परीक्षा हाल में असंख्य प्रतियोगियों के बीच शोकमग्न अर्जुन को हृषिकेश ने हंसते हुए यह वचन कहे।
श्रीभगवान उवाच-
तुम पांडित्य पूर्ण वचनों को कहते हुए उन लोगों के लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नहीं है.विद्वान लोग न तो परीक्षा में एपियर होने वाले के लिए और नहीं फेल होने वाले के लिए शोक करते है.ऐसा कभी नहीं हुआ है कि मैं न रहा होऊं या तुम न रहे हो अथवा ये समस्त कम्पीटीटर न रहे हों;और न ही ऐसा है कि भविष्य में हम लोग नहीं रहेंगे.यह शरीर धारी कम्पीटिशन इस शरीर में बालक,तरुण और वृद्धावस्था में निरंतर अग्रसर होते हुए मृत्यु के पश्चात दूसरे शरीर में चला जाता है.धीर व्यक्ति ऐसे परिवर्तन से मोह को प्राप्त नहीं होता है.हे कौन्तेय!इन्द्रिय बोध के कारण उत्पन्न फेल पास को अविचल भाव से ग्रहण कर.हे पुरुष ऋषभ जो पुरुष परिक्षा के रिजल्ट से विचलित नहीं होता है वह निश्चित ही असली प्रतियोगी है.यह कम्पीटिशन जो सब जगह व्याप्त है इसे तुम अविनाशी समझो.अविनाशी,अप्रमेय और शाश्वत कम्पीटिशन को धारण करने वाले इन शरीर धारी प्रतियोगियों का अंत निश्चित है.जो इस जीवात्मा एक्जाम को मारनेवाला या जो इसे मरा मानता है वे दोनों अज्ञानी है.इस कम्पीटिशन के लिए किसी काल में न तो जन्म है और न मृत्यु.यह अजन्मा नित्य शाश्वत और पुरातन है.लाखों लाख प्रतियोगियों के बर्बाद होकर मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता है.जो व्यक्ति इस बात को जानता है वह भला कैसे किसी को बर्बाद कर सकता है या बर्बाद हो सकता है.जिस प्रकार मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह कम्पीटिशन पुराने खांटी कम्पीटीटर को सलटा कर नए कम्पीटीटर को धारण करता है.इसको शस्त्र काट नहीं सकते,आग जला नहीं सकती जल भिगो नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती.यह शाश्वत,सर्वव्यापी,अविकारी,स्थिर और अचल है.किन्तु यदि तुम यह शोचते हो कि यह बर्बाद करने वाला है तो भी हे महाबाहो!तुम्हारे शोक का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि जो कम्पीटिशन में भाग लेता है उसका बर्बाद होना ध्रुव है.और कदाचित वह सफल होगया तो वह निश्चित ही दूसरो को बर्बाद करेगा इस प्रकार जो निश्चित है उसके लिए शोक कैसा?सारे लोग प्रारंभ में मासूम निर्दोष और पवित्र होते है कम्पीटिशन में उलझ कर वे धूर्त और श्याणे हो जाते है और कई साल तक परिक्षा देकर,धक्के खाकर सलट सल्टाकर अंत में ठण्ड पीकर जब उनके हाथ कुछ नहीं आता है तो फिर निर्दोष और पवित्र बन जाते है.अतः शोक करने की क्या आवश्यकता है.कोई इस कम्पीटिशन को आर्श्चय से देखता है.कोई इसे आर्श्चय की तरह बताता है तथा कोई इसे आर्श्चय की तरह सुनता है किन्तु कोई भी इसके के बारे में कभी भी तनिक भी नहीं समझ पाता है.माँ बाप के पैसे बर्बाद करने,या आई ए एस की परीक्षा में भाग लेने से अच्छे घर में रिश्ता हो जाने की सम्भावना के धर्म का पालन करने के लिए इस परीक्षा को देने से बढ़कर तुम्हारे लिए अन्य कोई कार्य नहीं है.हे पार्थ!वे प्रतियोगी धन्य है जिन्हें अपने आप इस परीक्षा हाल रुपी स्वर्ग द्वार में प्रवेश का अवसर मिलता है.अन्यथा अधिकाँश माँ बाप इतने बेवकूफ नहीं होते है की अपनी गाढी कमाई इस गला काट कम्पीटिशन पर जुए की तरह दांव पर लगा ले.क्योंकि वे जानते है कि छोरे का सिलेक्शन नहीं हुआ तो पैसा डूब जाएगा और सिलेक्शन हो गया तो वह ऐसी लड़की से शादी करेगा जो उन्हें घर से बाहर निकाल देगी.किन्तु यदि तुम परिक्षा में नहीं बैठते हो तो पी एस सी एब्सेंट लोगो को कभी पास नहीं करती चाहे सेटिंग कितनी ही तगडी हो चाहे कितनी बड़ी सिफारिश हो.इस प्रकार स्वधर्म का पालन नहीं करने और अपने कर्तव्य कि उपेक्षा करने से तुम्हे पाप लगेगा और तुम उन घरानों में जहाँ तुम्हारी सगाई की संभावना है अपनी प्रतिष्ठा खो दोगे.तुमसे,तुम्हारे परिवार से ईर्ष्या करने वाले,निर्लज्ज पडोसी,छोटी मोटी नौकरियों को करने वाले जो अन्दर से जल कर भी इसलिए चुप थे कहीं तुम अफसर बन गए तो उनकी रड़क निकाल लोगे,अब खुल कर तुम्हारी इज्जत का फालूदा बनाएंगे,इस प्रकार लोग सदैव तुम्हारे अपयश का वर्णन करेंगे और सम्मानित व्यक्ति के लिए अपकीर्ति मृत्यु से भी बढ़ कर है.जिन जिन महान धुरंधरों ने तुम्हारे नाम और यश का सम्मान दिया और तुम्हारी उत्तरपुस्तिकाओं में हेरा फेरी की तिकड़म की है सोचेंगे कि तुम्हारे में कोई पोदीना नहीं था,तुमने परीक्षा भय से एक्जाम छोड़ दिया है और इस तरह से वे तुम्हे तुच्छ मानेंगे.हे कौन्तेय!तुम इस परीक्षा में फेल भी हो गए तो कोचिंग इंस्टीट्युट के सफल संचालक बन कर स्वर्ग जैसी सुविधाओं का उपभोग करोगे और पास हो गए तो सरकारी सुविधाओं का स्वार्गिक दुरूपयोग कर सकोगे.अतः दोनों हाथो में लड्डू है.अतः दृढ संकल्प कर के खड़े होओ और परीक्षा दो.तुम हानि लाभ सुख दुःख पास फेल का विचार किये बिना परीक्षा दो.(क्रमशः)

8 टिप्‍पणियां:

निर्मला कपिला ने कहा…

श्रीकृष्ण और अर्जुन के माध्यम से बहुत अच्छा व्यंग बधाई

sanjay vyas ने कहा…

विकल,किम्कर्तव्यविमूढ़,निर्णय रुद्ध,बुद्धिच्युत,अन्यमनस्क और युद्ध-उदासीन प्रतियोगी पार्थ को जो प्रतियोगीश, स्पर्धा-रणंजय अरिसूदन-मधुसूदन ने उपदेश दिया है वो ही सत्य है.
'प्रतियोगिता कभी नष्ट न होने वाला पदार्थ है.'
ज़ोरदार आप्त वचन भाई जी.
हमारे कान आपके मुख के सम्मुख ही है.....

प्रकाश पाखी ने कहा…

शुक्रिया निर्मला जी,संजय जी..इस तरह की जब पहली पोस्ट लिखी तो यह इरादा नहीं था कि इस श्रंखला में और भी पोस्ट लिखूं...शायद यह सोचकर कि बाद की रचनाओं में वह ताजगी न आ पाए...पर पाठकों का हौसला और उम्मीद यही कहरे थे कि इसको लगातार करूँ सो लिखा है..आपकी हौसला आफजाई का शुक्रिया.

के सी ने कहा…

चमत्कृत कर देने वाले सीरियल में प्रवेश पा कर धन्य हुआ हूँ
दो बार पढ़ना पङता है फिर तीसरी बार असीम आनंद की प्राप्ति होती है.
कम से कम ५३ एपिसोड होने चाहिए इसके ....

Kamlesh Sharma ने कहा…

प्रकाश जी नमस्‍ते,
ब्‍लॉग पर डिटेल डाल दी है, कृपया दृष्टि डालें ।

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

pahle aapki post dekh gyee thi magar post ki length or mushkil shabad dekh ke chhodh gyee thi..abhi socha ki padh ke dekhun to jana ek achhi post padhe bina rah jati...compition ko shri krishan or arjun ke madyam se achhe se describe kiya hai...indeed a gud post..

अपूर्व ने कहा…

जबर्दस्त..झक्कास..भयंकर..
गांडीव तोड़ कर गदा फोड़ दिया आपने..यह गीता तो लगातार रोचक होती जा रही है..आज कृष्ण जी के उपदेश पढ़ कर हिल गया मैं तो..दुर्योधन की तरह..और यह पंक्तियाँ तो क्या कहूँ:
अन्यथा अधिकाँश माँ बाप इतने बेवकूफ नहीं होते है की अपनी गाढी कमाई इस गला काट कम्पीटिशन पर जुए की तरह दांव पर लगा ले.क्योंकि वे जानते है कि छोरे का सिलेक्शन नहीं हुआ तो पैसा डूब जाएगा और सिलेक्शन हो गया तो वह ऐसी लड़की से शादी करेगा जो उन्हें घर से बाहर निकाल देगी.

..धृतराष्ट को भी दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हो गयी होगी..

शोभना चौरे ने कहा…

कौन्तेय!तुम इस परीक्षा में फेल भी हो गए तो कोचिंग इंस्टीट्युट के सफल संचालक बन कर स्वर्ग जैसी सुविधाओं का उपभोग करोगे और पास हो गए तो सरकारी सुविधाओं का स्वार्गिक दुरूपयोग कर सकोगे.अतः दोनों हाथो में लड्डू है.अतः दृढ संकल्प कर के खड़े होओ और परीक्षा दो.तुम हानि लाभ सुख दुःख पास फेल का विचार किये बिना परीक्षा दो
उफ़ कितना सच लिखा है आपने |भोगा हुआ सच |कभी कभी मान मे विचार आता है बरसो से कवि अपनी क्विताओ मे ,लेखक अपने लेखको मे कलाकार अपनी अदाकारी मे, नेताओ के खिलाफ सरकारो के खिलाफ व्यापारियो के खिलाफ व्यंग लिखते आए है जो सिर्फ़ मनो रंजन तक ही सीमित रहगया है ना भ्रष्टाचारकम हुआ ना नेताओ की मककारी ना ही व्यपरियो की मुनाफ़ा खोरी |बल्की और बढ़ी ही है |आप आज़ादी के बाद के सालो को देख लीजिए बेईमानी का प्रतिशत कितना बढ़ा है ?जिस तारह धार्मिक प्रवचन की बाढ़ मे धर्म कहाँ बह गया उसी? और लोग सिर्फ़ भीड़ बनकर रह गये \ किंतु लगता है आपके द्वारा रचित आधुनिक गीता ज़रूर क्रांति लाकर रहेगी |बहुत ही मेहनत और अनुभव के बाद का लेखन है लिखते रहे |
शुभकामनाए|
आपने मेरे परब्लॉगपर जो अनमोल टिप्पणी देकर महिला ओ के कार्य को सम्मान दिया है उसके लिए मई ह्रदय से आपकी अभारी हू |
आभार