हे,घंटाल कम्पीटीटर !मैंने सांख्य द्वारा गलाकाट कम्पीटिशन के इस ज्ञान का वर्णन किया है.अब मैं निष्काम भाव से लोगों का गला कैसे काटा जाय उस कर्म योग का वर्णन करता हूँ, उसे सुनो.हे पार्थ!तुम यदि ऐसे ज्ञान से अपने नजदीक रहने वाले,या मदद करने वाले किसी भी कम्पीटीटर का गला काटने का कर्म करोगे तो तुम्हें कर्म दोष या कर्म बंधन का सामना नहीं करना पड़ेगा.इस प्रकार के प्रयास से तुम्हें हानि नहीं हो सकती बल्कि तुम्हारी सारी उँगलियाँ घी में और सर कढाई में होने सदृश लाभ ही लाभ प्राप्त करोगे.जैसे ही तुम महान कृतघ्नता को प्राप्त होवोगे इस पथ तुम्हें भय नहीं लगेगा अपितु लोग तुमसे भयभीत होने लगेंगे. जो मौकापरस्त कर्म की श्रेष्ठता को अपना कर्म के मार्ग पर चलते है,वे अपने घर भरने के प्रयोजन पर दृढ है और उनका लक्ष्य भी एक होता है हर हाल में अपनी अंटी फुल रखना,चाहे इसके लिए किसी को भी निपटाना पड़े. हे कुरुनन्दन !जो दृढ प्रतिज्ञ नहीं है उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं में विभक्त रहने से वे कन्फ्यूज रहते है.पैसे कमाने की इच्छा होने के बावजूद वे ईमानदार हो कर दुःख भोगते है.नौकरी लगने पर ऐसे पुरुष आदर्श ईमानदार लोक सेवक बन कर चलने की कोशिश करते है.शीघ्र उन्हें अपनी गलती का अहसास होने लगता है.उनके अधीनस्थ लोगों को यह कहकर कि"अजी,काहे के ईमानदार डबल पैसे खाने वाले डाकू है.''लोगों से उनके नाम का डबल पैसा लेकर मठोठ जाते है.और शीघ्र उन्हें विभाग का सबसे बड़ा डकैत घोषित कर दिया जाता.उनके खिलाफ जो भी चार्जशीट बनती है उसे ड्राप कराने का पैसा नहीं होने से उनके इन्क्रीमेंट और प्रोमोशन रुक जाते है.उनके बच्चे फटीचर स्कूलों में पढ़ते है और लोफर बन जाते है.रिटायरमेंट तक का समय लोन लेकर जैसे तैसे कट जाता है पर रिटायर होने के बाद बच्चे उन्हें घर से निकाल देते है.हे अर्जुन!ऐसे ईमानदार और भले लोगो को दुर्गति होना निश्चित है. हे पार्थ!अज्ञानी और अल्पज्ञानी लोग ही ईमानदारी,नैतिकता,सादगी, सचाई,कर्मठता,समर्पण आदि अलंकारमय शब्दों के प्रति आवश्यकता से अधिक आकर्षित और आसक्त होकर स्वर्ग की प्राप्ति,अगले जन्म में महान घोटालेबाज के घर जन्म लेना,जन्मों की पुण्याई अगले जन्म में तेलगी बनने की आस में वर्तमान जन्म के हाथ आये अवसरों से हाथ धो बैठते है. अपने सबोर्डिनेट की नित नई आने वाली चमचमाती गाड़ियों पर कुढ़ते हुए स्वयं बसों और ऑटो में सफ़र करते है.फिर स्वयं को दिलासा देने के लिए अटकी हुई केसेट की तरह ईमानदारी ईमानदारी रटते रहते है. जो लोग पी सी एस परीक्षा में सेटिंग या नक़ल नहीं बिठा पाते है ,जो जाति और समाज के आधार पर अपनी अप्रोच नहीं कर पाते है और धनबल से भी कोई तिकड़म नहीं बिठा पाते है वे जंगली श्वानो के झुंड के बीच मृग के बच्चे की भाँती जीवित रहने के अधिकारी नहीं होते है.ऐसे लोगों को तू अपने सेटिंग और तिकड़म के पराक्रम से वध कर डाल.ऐसे लोग पी एस सी की परीक्षा प्रणाली की कमजोरी से चयन हो भी जाते है तो अधिकारी बन कर खुद तो दुखी होते ही है साथ में सम्पूर्ण समाज में दुःख उत्पन्न करते है.ऐसे लोग ईमानदारी के प्रति आसक्त हो कर कर्तव्यपालन के मोहजाल में फंस जाते है.उनके मनों में सर्वव्यापी भ्रष्टाचार और कम्पीटिशन के प्रति भक्ति का दृढ निश्चय नहीं होता है. वेदों में प्रकृति के तीन गुणों स्वार्थ परायणता,भाई भतीजावाद,और राजनीति का वर्णन हुआ है.हे अर्जुन!तू इन तीनों गुणों में महान बन कर ऊपर उठ.अपने समस्त लाभ सुरक्षित कर सारी चिंताओं से मुक्त हो स्वार्थ परायण बन. जिस प्रकार एक छोटे से कूप का सारा कार्य एक विशाल जलाशय से तत्काल पूर्ण हो जाता है ठीक उसी तरह से तू कोई बड़ा हाथ मार.इन तीन गुणों को आंतरिक रूप से जानने से तू वेदज्ञ बन जाएगा.और अपने सारे प्रयोजन सिद्ध कर सकेगा चाहे सरकारी गाडी में बच्चो को घुमाना हो या सरकारी मजदूरों से घर के काम कराना हो तू सब कुछ कर पाएगा. कम्पीटिशन में तू तो अपना कर्तव्य करने का अधिकारी है.तू सेंटर पर तिकड़म बिठा कर नकल ही कर सकता है,या इंटरवियु में आप्रोच ही कर सकता है.परिणाम पर तेरा कोई अधिकार नहीं है.क्योंकि तुझे यह कभी पता नहीं लग सकता कि दुसरे लोगों ने कितनी भारी सेटिंग बिठा रखी है.तुम न तो रिजल्ट के लिए खुद को जिम्मेदार मानो और नहीं सेटिंग न करने के कर्म में आसक्ति रखो. हे अर्जुन!जब तू रिजल्ट और पास फेल की समस्त चिंता और आसक्ति छोड़ कर अपने आप को सेटिंग,तिकड़म बाजी,पेपर आउट करना,पेपर सेटर से जोड़तोड़ और उत्तर पुस्तिकाएं बदलने में दक्ष हो जाएगा और अंत में उत्तर पुस्तिकाओं को जांचने वाले प्रोफेसरों तक पहुँच जाएगा तो तेरी यह क्षमता योग कहलाएगी.और इस परीक्षा प्रणाली से तू एकात्म प्राप्त कर लेगा. हे धनञ्जय !तू इसके लिए पूरे भक्तिभाव और समर्पण से ऐसे महान गुरुघंटालों को खोज.मेरे ऊपर कहे कार्यो को करने में छोटे से छोटा व्यक्ति भी उपयोगी लगे तो तू उसके चरण पकड ले,ये ही तेरी मुक्ति का सच्चा मार्ग है. जो व्यक्ति बिना पैसा और पावर बांटे अफसर बनना चाहते है और अपने सकाम कर्मो का लुत्फ़ लेना चाहते है वे निश्चय ही कृपण है.ऐसे लोगों का जगत में कल्याण होना संभव नहीं है.क्योंकि नौकरी लगने पर भी बाँट कर खाने में ही सच्ची बैकुंठ प्राप्ति है.तुझे बैकुंठा और कुंठा में एक का चयन करना होगा तो तू सही वस्तु का चयन कर. जिससे भी तेरी सेटिंग बैठ सके तू उनकी भक्ति कर.पैसे फल उपहारों से यज्ञ कर तू परिक्षा के रिजल्ट को निकालने वाले लोगों से संयुक्त हो जा.अपने कल्याण के लिए तू नेताओं मेम्बरों दलालों और ऐसे तिकड़मी सुकर्म करने वालों से आपने आपको को जोड़ कर असली योग का कौशल प्राप्त कर ले.अतः तू योग का प्रयत्न कर यही तेरे कर्मो की कुशलता है जो जीवन भर तेर साथ चलेगी. इस तरह से सेटिंग भक्ति से बड़े बड़े घंटाल भक्त इस भौतिक संसार में कर्म के फलो की चिंता से मुक्त होकर असफलता और नुक्सान के दुश्चक्र से मुक्त रहकर महान गुरुघंटालों की शरण में जाकर उस अवस्था को प्राप्त होते है जो समस्त चिंताओं और दुखों से परे है क्योंकि इस प्रकार मनोनुकूल परिणाम हम पहले ही तय कर लेते है. जब तेरी बुद्धि सिद्धान्तवादिता.ईमानदारी,मेहनत,कर्तव्य परायणता जैसे मोटे अक्षरों के मोह रुपी दल दल वन को पार कर लेगी तो तुम सुने हुए तथा सुनने योग्य सभी प्रकार के दिखावटी लोकतंत्र,स्वतंत्रता,न्याय, भाई चारा,निष्पक्षता,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि कर्मो के प्रति अन्यमनस्क और तटस्थ हो जाओगे. जब तुम्हारा मन सिद्धांत ,ईमानदारी,कर्तव्य.मेहनत इत्यादि शब्दों की अलंकारिक भाषा से विचलित न हो.और दलाली,सेटिंग और तिकड़म बाजी के द्वारा भ्रष्टाचार की समाधि में स्थिर हो जावे तो तुम्हें दिव्य चेतना प्राप्त हो जावेगी.
अर्जुन उवाच-
हे कृष्ण!भ्रष्टाचार में लीन चेतना वाले स्थित प्रज्ञ व्यक्ति के क्या लक्षण है?वह कैसे बोलता है?तथा उसकी भाषा क्या है?वह किस तरह बैठता और चलता कैसे है?
श्री भगवान् उवाच-
हे पार्थ!जब मनुष्य सिद्धांत,नैतिकता ईमानदारी,परोपकार,मदद,कर्तव्यपालन,मेहनत,दया,कार्यालय आदेश,नियम,कानून,और इस तरह की बीमारियों से उत्त्पन्न होने वाली समस्त ड्यूटी रुपी आवश्यकताओं का परित्याग कर देता है.और जब इस तरह से उसका मन विशुद्ध होकर अन्याय को अन्य आय के रूप में पहचान कर आत्मा में लीन हो टेबल के नीचे से आने वाले अबाध स्रोत में स्थित हो परम संतोष प्राप्त करता है तो वह विशुद्ध दिव्य चेतना को प्राप्त हो स्थित प्रज्ञ कहा जाता है. जो रिश्वत लेने में आने वाली कठिनाइयों जैसे-झाड़,डांट,धमकी,शिकायत,सी बी आई आने पर भी विचलित नहीं होता है.जो इस में आने वाली सिफारिश,रेफरेंस,रिश्तेदारी की आसक्ति,पकडे जाने शिकायत, जांच,चार्ज शीट मिलने,उग्र जनता द्वारा पीटा जाना आदि भय,और लोगों उच्चाधिकारियों के क्रोध से सर्वथा अविचलित और मुक्त है,और केवल धन में रमा रहता है वह स्थिर मन वाला मुनि कहलाता है. जिसको केवल अन्य आय नजर आती है और इसको प्राप्त करने में आने वाले अशुभ परिणामों से न तो घृणा करता है और नहीं इसके कारण मिलने वाली सुविधाओं और बेंक बेलेंस से हर्षित होता है वह पूर्ण ज्ञान में स्थिर होता है.जिस प्रकार कछुआ अपने अंगो को संकुचित कर के खोल के भीतर कर लेता है.उसी तरह से जो व्यक्ति अपने आँख कान किसी काम से उसके पास आने वाले व्यक्ति की गरीबी,प्रभाव,कर्तव्य नियम कानून के लिए के प्रति बंद कर देता है और केवल केश और काइंड को देखता है.इस तरह से धन संग्रहन में आने वाली फालतू बातों से अपनी इन्द्रियों को खींच लेता है,वह भ्रष्टाचार की पूर्ण चेतना में दृढ़ता पूर्वक स्थित होता है. इस देह धारी जीव में डर या प्रेशर से ईमानदार भले हो जाय पर उसमे भ्रष्टाचार से प्राप्त होने वाले सुखों की प्राप्ति की इच्छा बनी रहती है.लेकिन एक बार अन्य आय के उत्तम रस का अनुभव होने पर वह ईमानदारी को हमेशा के लिए ताबूत में बंद कर भ्रष्टाचार में भक्ति भावः से स्थिर हो जाता है. (क्रमश:)
9 टिप्पणियां:
सुन्दर शैली.. पसन्द आयी।
प्रतियो'गीता' का निष्काम कर्मयोग पहले बार इतनी मौलिक व्याख्या के साथ प्रस्तुत हुआ है.
हम यही बैठे रहेंगे सुनने को, आप आने दीजिये.
आपने अद्भुत लिखा है
व्यंग्य के स्तर को किसी उत्कृष्ट रचना से कम नहीं आँका जा सकता. सोचता हूँ अगर लेखन आपका व्यवसाय होता तो भी फलदायी ही होता.
बड़ा शानदार-सही दिशा में लगा है ...बेहतरीन शैली.
निष्काम भाव से लोगों का गला कैसे काटा जाय उस कर्म योग का वर्णन करता हूँ, उसे सुनो...
Ji kahein?
जैसे ही तुम महान कृतघ्नता को प्राप्त होवोगे इस पथ तुम्हें भय नहीं लगेगा अपितु लोग तुमसे भयभीत होने लगेंगे.
(humne dekha hai tazruba karke)
ईमानदारी,नैतिकता,सादगी, सचाई,कर्मठता,समर्पण आदि अलंकारमय शब्दों के प्रति आवश्यकता से अधिक आकर्षित और आसक्त होकर स्वर्ग की प्राप्ति,अगले जन्म में महान घोटालेबाज के घर जन्म लेना,जन्मों की पुण्याई अगले जन्म में तेलगी बनने की आस में वर्तमान जन्म के हाथ आये अवसरों से हाथ धो बैठते है. अपने सबोर्डिनेट की नित नई आने वाली चमचमाती गाड़ियों पर कुढ़ते हुए स्वयं बसों और ऑटो में सफ़र करते है.फिर स्वयं को दिलासा देने के लिए अटकी हुई केसेट की तरह ईमानदारी ईमानदारी रटते रहते है.
(poorntya sehmat)
Ek behterin post Pakhi bhai.
Vyang mujhe hamesha hi bhata hai !!
aapki vyang ki peni dhaar ka kaya hoon....
...dobara padhne chala aaiya !!
Har baar naye aayamo ka sparsh kar rahe hain.Yun hi likhte rahen.
पाखी जी पहली बार जब इसे पढ़ा तो ऐसी तुरीयावथा मे चला गया कि कोई प्रतिक्रिया करना ही असम्भव हो गया..सो आज दोबारा आया हूँ हिम्मत कर के..इतना ही कहूंगा कि आपकी यह श्रंखला इस ब्लॉग जगत की धकापेल से बहुत ऊपर स्थान रखती है..आपको पढ़ना लगता है जैसे परसाई जी, शरद जोशी या ज्ञान जी को पढ़ रहा हूँ..काशी का असी भी यही फ़ीलिंग देता था कभी..सम्हाल कर रखियेगा इसे..और सम्भव हो तो प्रिंट मीडिया द्वारा विस्तृत पाठक जगत तक पहुँचाइये..कलम को उसका पूरा सम्मान मिलना चाहिये.
प्रकाश जी,
एक कसा हुआ व्यंग्य!
सुन्दर शब्द चयन और पैनी शैली, मुबारक!!
त्यौहारों की अग्रिम शुभकामनायें,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
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