रात के डिनर में पी के सर के यहाँ फिश फ्राई और सैलाना रेसिपी का कालिया तर खाकर आनंदित हो गए.बहुत दिनों बाद दिमाग काम के बोझ से मुक्त था.मेरे लम्बे पूजा पाठ की वजह से इस बात की आशंका जताई गई कि मैं सुबह फ्लाईट मिस करवा सकता हूँ.पर मैंने सुबह चार बजे उठकर नहा धोकर अपनी पूजा छ बजे तक पूरी कर दी.एअरपोर्ट जाने का काम मुझे कम ही पड़ता है.कुल मिलाकर यह मेरी जीवन की चौथी हवाई यात्रा होने वाली थी.जब हम एअरपोर्ट को रवाना हुए तो मैं टिकट पर लिखे इन्सट्रकशन पढ़कर चौंक गया.जयपुर में डोमेस्टिक फ्लाइट्स टर्मिनल २ से जाने वाली थी.पर मेरे कहने पर किसी ने गौर नहीं किया.हम टर्मिनल वन पर पहुँच गए.मैं अपने व्यवहार को मन ही मन बदलने और हवाई यात्रा को नार्मल लेने का प्रयास कर रहा था.बड़ी सहजता दिखाते हुए मैंने अपने आप को ऐसा दर्शाने की कोशिश की जैसे मै हर रोज हवाई जहाज से अप डाउन करता हूँ. मैंने एक ट्राली ली उस पर हमारा सामान रखा और हम सब अपने कार्ड दिखाते गेट में दाखिल हो गए.टिकट चेक कराते ही हमें सिक्युरिटी ने बताया कि आप गलत जगह आगये है.आपकी फ्लाईट टर्मिनल 2 से जाने वाली है जो यहाँ से तीन चार किलोमीटर दूर है.अब हमारी हालत देखने लायक थी.हमारी कार वापस मुड चुकी थी.मैं ट्राली और हवाई यात्रा के आदी होने की अपने चेहरे पर आई कृत्रिमता को एक तरफ डाल अपना सामान को दोनों हाथों से पकड़ कर वैसे भागा जैसे छूटती बस को पकड़ने के लिए अक्सर भागा करता हूँ.भला हो ड्राइवर का जिसने कार के रिअर व्यू मिरर में मुझे भागते देख लिया.खैर जल्दी उठने और जल्दी एअरपोर्ट पर पहुँचने के लाभ तो अब गायब हो चुके थे.हम डोमेस्टिक टर्मिनल पर पहुंचे तो चेक इन करने के लिए बहुत कम समय बचा था.भागते भागते चेक इन कर बोर्डिंग पास लिए.थोड़ी देर में हम हवाई जहाज में सवार हो गए.
हवाई जहाज और डीलक्स बस में ज्यादा फर्क मुझे नजर नहीं आया.बस में टू बाई टू सिटिंग होती है.तो हवाई जहाज में थ्री बाई थ्री सिटिंग होती है.सीटें हवाई जहाज में ज्यादा होती है.बस प्लेन आसमान में उड़ता है.और प्लेन में परिचारिकाएँ होती है उसकी जगह बस में खलासी होता है.मैं कल्पना करने लगा अगर एयर होस्टेस की तरह बस होस्टेस होती तो बस का सफर कितना सुखद होता और उसके विपरीत प्लेन में तीन चार खलासी होते तो शायद प्लेन में कोई बैठना पसंद नहीं करता.मिस्टर थरूर की केटल क्लास में बैठने के आनंद से भावातिरेक हो गया था.हवाई जहाज रन वे पर दौड़ लगा रहा था तो प्लेन क्रेश के तथ्य दिमाग में धुमड़ने लगे कि सबसे ज्यादा प्लेन क्रेश लेंडिंग और टेक आफ के समय होते है.तो बजरंग बाण, हनुमान चालीसा,राहू कवच और महा मृत्युंजय सहित ना ना प्रकार स्त्रोत मन ही मन पढ़ डाले.और प्लेन आसमान की ऊंचाइयां नापने लगा.
साढ़े बारह बजे प्लेन ने गुवाहाटी के लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोलोई एअरपोर्ट पर लेंड किया.हम पूर्वोत्तर भारत के एक मनोरम और खूबसूरत प्रदेश में पहुंचे थे.और मैं अपने जीवन में पहली बार यहाँ आया था.
8 टिप्पणियां:
अच्छी रोचक पोस्ट लिखी है।्बधाई।
आपकी हवाई यात्रा का वृतांत बहुत ही रोचक लगा है प्रकाश जी....
प्लेन में खलासी और बस में बस होस्टेस क्या बात है...interesting होगा ये....आईडिया..
मुझे तो बस उस बस की हालत सोच कर ही चक्कर आने लगा है..हा हा हा
और हाँ शुक्र हैं आपको बजरंग बाण, हनुमान चालीसा,राहू कवच और महा मृत्युंजय ये सब याद हैं..
मुझे तो बस हनुमान चालीसा ही याद है...तो वही जप लेती हूँ
हा हा हा
प्रकाश भाई,
पोस्त एक सास मे पढ गया
लगा जैसे पूरी मूवी देख ली हो एक एक फ़्रेम आन्ख के सामने था और बीचो बीच आप फ़िल्मी हीरो कि तरह :)
फिल्लम अभी ख़तम नहीं हुई!
मजेदार हवाई अनुभव.अब गुवाहाटी पहुंचे है.दिखाते जाइए.
हा ! हा!!
दिलचस्प वर्णन प्रकाश जी।
sb kuchh bahut hi rochak
Guwahaati ke sansmaran
waali post ka bhi intzaar rahegaa
Nav varsh ki dher sari shubkamnayen.
great description!
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