"मैं जा रहा हूँ,हनी!" मेन गेट से निकलते हुए परेश ने कहा।
सुधा ने लगभग जबरदस्ती ही एक औपचारिक मुस्कान ओढ़ते हुए हाथ हिलाया।
परेश कभी सुधर ही नहीं सकता था।
भीगे हुए तौलिए से बिस्तर का एक हिस्सा गीला हो चुका था।
उसके कपड़े बेतरतीब से कुछ कुर्सी पर और कुछ बेडरूम के दरवाजे पर पटके हुए थे।
'हजार बार समझा दिया पर दिमाग में डाले कौन,मैं नौकरानी जो मिल गयी हूँ।'सुधा कुढ़ते हुए बड़बड़ाने सी लगी।
'न तौलिया बाहर सुखाएँगे और न कपड़े वाशरूम में रखेंगे।साहबी चढ़ी हुई है।'
प्रेशर कुकर के जोरदार सीटी से उसका ध्यान रसोई में गया।
'हे,भगवान!चावल तो गल ही गए होंगे।' भागकर रसोई में गई और गैस बन्द कर दिया।
रजनी और शिखर स्कूल जा चुके थे।
वह जल्दी जल्दी में तैयार होने लगी।
"शांता बाई, बर्तन ठीक से धोना।और ताला लगाना मत भूलना! मैं जारही हूँ।"उसने स्कूटी को किक लगाते हुए कहा।
स्कूल में छह घण्टे बिताने और घर की दोहरी जिम्मेदारी से सुकून तो था ही नहीं।ऊपर से परेश जैसा बोरिंग पति पाकर जिंदगी जितनी हो सकती है उससे भी बहुत अधिक नीरस थी।
पूरे रास्ते उसके मन में रात की बहस गूंज रही थी।
रात को नौ बजे तक इंतजार करने के बाद उसने कपड़े बदल लिए थे।वह जानती थी हमेशा की तरह आज भी परेश भूल चुका होगा।
उनका ला मेरियट में डिनर का प्रोग्राम था।
वह पूरे दिन उसके ही बारे में सोच रही थी।बहुत खुश भी थी।
वह सात बजे तैयार हो गयी थी। उसने अपनी पसंदीदा सिल्क की पिंक साड़ी पहन ली थी।ब्लेक बॉर्डर वाली उस साड़ी में वह बेहद खूबसूरत लगती थी।
साढ़े सात और आठ बज गए।फिर दीवार घड़ी ने नौ के घण्टे भी बजाए।
मगर वह नहीं आया।
फिर रात को साढ़े ग्यारह बजे परेश ने शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए घर में प्रवेश किया।
"खाना बना के रख दिया है।सब्जी गर्म कर के रख रही हूँ।तुम खा लेना।मैं सोने जा रही हूँ।सुबह जल्दी उठना है ।"सुधा ने कहा।
"रुको तो जानेमन।आज की खुश खबरी तो सुनो।"परेश लड़खड़ाए शब्दों में बोला।
"आज तुम्हारे प्रॉमिस किये डिनर के इंतजार में दो घण्टे तक तैयार हो कर बैठी रही और तुम दारू पीने में मशगूल रहे यह खुशखबरी काफी है मेरे लिये।मुझे बख्श दीजिये और आप अपनी जिंदगी के आनंद लीजिये।यह कोई पहली बार तो है नहीं,हमेशा से चला आ रहा है।"वह लगभग चिल्लाते हुए बोली।,
"आज बैंक मैनेजर के साथ था।समय लग गया।"
"मैं छह महीने से बैंक मैनेजर केसाथ होने के बहाने सुन चुकी हूँ।तुम्हे जब दारू पीनी होती है तो उसका नाम ले लेते हो।मैं भी पढ़ी लिखी हूँ,गंवार नहीं हूँ जो तुम्हारी इन बातों को मान लूँ।"उसे गुस्सा आ रहा था।
"तुम भी अजीब हो,बरसों तक खून पीती थीं की खुद का मकान लेना है।और उसके लिए लोगों के नोहरे करूँ तो उसमे भी नुक़्श नजर आते हैं।मैंने तो पहले ही कहा था नया मकान खरीदना हमारे बस का नहीं है।जैसे तैसे बैंक से लोन पास करवा रहा हूँ तो भी तुम्हें मेरी दारू ही नजर आती है।"परेश जोर जोर से बोलने लगा।
सुधा ने गुस्से से तमतमाते हुए दरवाजा जोर से बन्द कर दिया।और बिस्तर में घुस कर सो गयी।उसे खुद पर रोना आ रहा था।परेश को तो खुद के सिवा किसी की परवाह ही नहीं है ।
बच्चों की फीस के लिए तीन बार फोन आ गया।रोज याद दिलाती हूँ पर वही शाम को कहना कि आज टाइम नही मिला कल करवा दूंगा।
स्कूल की वैन वाला छोड़ कर गए दस दिन हो गए।रोज बच्चे सिटी बस से स्कूल जा रहे हैं साहब को कोई परवाह नहीं।
स्कूल तक पहुंचते ही उसने चेहरे पर स्कार्फ हटाया।आंखों की भीगी कोरों को साफ किया और स्टाफ रूम की तरफ बढ़ गयी।
*********
कल रेखा मिली थी।उसकी कॉलेज की क्लासमेट।उसके पति के साथ स्कूल आई थी।
उसके पति प्राइवेट कम्पनी में जॉब करते हैं।अभी हाल ही में ट्रांसफर होकर आए है।
कपड़े पहनने और बातों का गज़ब सलीका।बड़ी अदब और धीमी आवाज में इस तरह बात करना कि किसी को भी मदहोश कर दे।
बिल्कुल कूल और मुस्कुराहट भरा चेहरा।एकदम हीरो की तरह।
उसे रेखा ईर्ष्या होने लगी।कॉलेज में ढीली ढाली, बेदम और सूखी सी रहने वाली रेखा का एटीट्यूड भी अब देखने लायक था।
उसने चाय की मनुहार की तो रेखा ने मना कर दिया।कहने लगी अभी होटल जाकर लंच लेना है।
रेखा के पति समीर ने कहा कि रेखा को चेकअप के लिए भी लेजाना है इसलिए आज चाय की माफी दे दें।
'चेकअप?'उसने पूछा।
'हाँ,रेखा को बी पी की शिकायत है।'समीर ने कहा,"और इसको मैं अकेले नहीं छोड़ सकता।"
***********
डेढ़ बजे स्कूल की छुट्टी के बाद वह स्कूटी से कुछ सौ मीटर ही गयी होगी कि एक सफेद कर ने उसका रास्ता रोका।
वह कुछ समझ पाती की उसमें से समीर मुस्कुराते हुए बाहर निकला और मीठी सी आवाज में बोला-नमस्ते सुधा जी।
सफेद डेनिम की जीन्स और डार्क ग्रीन शर्ट उसके लंबे और गोरे व्यक्तित्व पर गज़ब का जच रहा था।
उसको अपने स्कूटी पर होने ओर शर्म आयी।
उसने ड्राइवर को कहा कि तुम मेम की स्कूटी लेकर द गोल्डन कॉफी हाउस पर पहुंचो।
"सुधा जी,इफ यू डोंट माइंड,क्या हम आपके साथ कॉफी ले सकते हैं।"उसने पूछते हुए कार का गेट खोल दिया।
सुधा को कुछ सूझ ही नहीं पाया।
वह चुपचाप कार में बैठ गई।
काफी के दौरान वह बड़े अच्छे से उसकी बातें सुनता रहा।
सुधा के माइग्रेन की प्रॉब्लम के बारे में सुनकर वह कई नुस्खे बताने लगा।उसने अपनी पहचान के एक बहुत
अच्छे डॉक्टर के बारे में भी बताया।
सुधा भी अपनी आप बीती और रोजमर्रा की जिंदगी की शिकायतों की चर्चा करके काफी अच्छा और हल्का महसूस कर रही थी।
*********
रोज घर पर परेश से चिक चिक बढ़ने लगी।वह परेश की तुलना समीर से करने लगी।परेश में न धैर्य था न समीर वाला अदब।और न ही समीर वाला ड्रेसिंग सेंस।
अब वह रोज जल्दी से जल्दी घर से छूट कर स्कूल पहुंचने में लग जाती थी।
उसके बदले हुए व्यवहार से परेश भी परेशान था।पर अब वह भी चुप चुप रहने लगा।
स्कूल के बाद काफी हाउस पर घण्टो तक सुधा और समीर बातें करते रहते थे।
"सुधा,कल तुम स्कूटी मत लाना।मैं कल वैसे ही तुम्हारे घर के पास से ही निकलूंगा तो तुम्हें पिक कर लूंगा और दोपहर स्कूल के बाद छोड़ भी दूंगा।"उसने धीमी और मीठी आवाज में कहा।
हालांकि उसे थोड़ा अजीब लगा पर वह मना नही कर सकती थी।निश्चित ही उसकी ना समीर को हर्ट करती।
उस दिन दोपहर के बाद वह समीर की कार में थी।
उन दोनों ने काफी हाउस की उस टेबल पर बैठ कर घण्टो बातें की जिसके पास की खिड़की से आधा शहर दिखाई देता था।
"सुधा,मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ।"
"कहो!"
"मैं जानता हूँ कि यह नैतिक नहीं है।पर मैं तुमसे अटेच हो चुका हूँ।"समीर के चेहरे पर एक उदासी थी।
"चूंकि यह ठीक नहीं है,इसलिए आज मैं तुमसे हमेशा के लिए विदा लेने आया हूँ।"उसने कहा।
"आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे।प्लीज मुझे माफ कर देना।"
सुधा का दिल बैठने लगा।
"पर हम अच्छे दोस्त हैं,समीर।"
"हाँ,सही कह रही हो तुम।पर मैं मन ही मन में तुम्हें चाहने लगा हूँ।इसमे तुम्हारी कोई गलती नहीं है।और मैं बदले में भी तुमसे कुछ नहीं चाहता हूँ।बस हम आज इसी वक्त एक अच्छे भाव के साथ एक दूसरे को हमेशा के लिए गुडबाय कह दें।ताकि इन मीठी यादों को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें।"समीर की आँखों में आंसू थे।
सुधा स्तब्ध थी।उसके आँखों के सामने पिछले कुछ दिनों से आजादी और सुकून भरी यादों से बने महल ध्वस्त होने लगे थे।
"मुझे माफ कर देना पर यही हम सब के लिए ठीक रहेगा।"
समीर ने उसे उसके घर की गली पर छोड़ते हुए कहा।
सुधा भारी कदमों से घर की ओर बढ़ने लगी।उसकी आँखों के आगे से समीर का उदास और मासूम चेहरा ओझल होने का नाम ही नहीं ले रहा था।
घर पहुंच कर देखा तो परेश बच्चों को होमवर्क करवा रहा था।
बाई जी खाना बनाकर जाने की तैयारी रही थी।
वह बेडरूम से ड्रेसिंग रूम में जाकर कपड़े बदलने लगी।
सुधा अपने पर्स से मेकअप का सामान निकाल ड्रेसिंग टेबल की दराज में रखने लगी।तभी उसके हाथ में एक कागज का लिफाफा आया।
उसमे एक पत्र था।
समीर की राइटिंग देखकर उसका दिल जोर जोर से बजने लगा।
'प्रिय सुधा,
जानता हूँ,तुम्हे यह पत्र नहीं लिखना चाहिए।पर यह तुमपर है की तुम इसे पढ़ो,रखो या फाड़कर फेंक दो।तुम जो चाहे निर्णय करो मुझे मंजूर है।
मैं हमेशा के लिए यह शहर छोड़ कर जा रहा हूँ।
मैं तुम्हारे बिना अपने जीवन को नीरस और अस्तित्व हीन समझता हूँ।तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है।तुमसे एक अंतिम मुलाकात मुझे जीने का सहारा दे देगी।
इसलिए एक आखिरी बार तुमसे मिलना चाहता हूँ।और वह भी एक प्रेमी के रूप में।मैं ग्रीन प्लाजा होटल के रूम नम्बर 301 में मिलूंगा।
अगर तुम न चाहो तो मत आना।
सिर्फ तुम्हारा
समीर
सुधा का बांध टूटने को था।उसने पर्स उठाया और बाहर निकलने लगी।
गेट पर परेश को खड़ा देखकर वह थोड़ी हड़बड़ा गयी।
"रेखा की तबियत ठीक नहीं है,मैं उसके पास जा रही हूँ।"
"बहुत देर हो गयी है,तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद के लिए साथ चलूँ?"परेश ने पूछा।
"नहीं उसके हस्बैंड घर पर नहीं है उसको ठीक नहीं लगेगा।मैं संभाल लूंगी।"सुधा बोली।
उसने स्कूटी स्टार्ट की ओर ग्रीन प्लाजा की तरफ बढ़ गई।
रात के नौ बज चुके थे।वह ग्रीन प्लाजा पहुंची ।आधुनिकता और चका चौंध से भरा हुआ नव धनाढ्यों का मनोरंजन स्थल था होटल ग्रीन प्लाजा।
वह रिसेप्शन की तरफ बढ़ी।वह कुछ पूछ पाती कि रिसेप्शन पर पहले से खड़ी एक लड़की ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा-"कैन आई मीट मिस्टर समीर कुलश्रेष्ठ।"
किसी दूसरी लड़की के मुंह से समीर का नाम सुनकर सुधा चौंक गयी।
"श्युर मैम,ही इस वेटिंग फ़ॉर यू ...रूम नम्बर 301...हियर इज अनादर की फ़ॉर यू।थर्ड फ्लोर, द लिफ्ट इज युर राइट साइड "
"थैंक यू।"
लड़की चाबी लेकर लिफ्ट की तरफ बढ़ी।सुधा भी उसके साथ लिफ्ट में घुस गयी।
तीसरे फ्लोर पर सुधा ने लड़की की विपरीत तरफ धीरे धीरे बढ़ने लगी।
लिफ्ट के पास ही 301 नम्बर रूम था।लड़की ने चाबी स्वेप की और रूम ने घुस गयी।सुधा भी मुड़कर रूम के दरवाजे के पास पहुंची।
दरवाजा खुला हुआ था।
समीर और वह लड़की जोर जोर से झगड़ रहे थे।लड़की उसे धोखेबाज कह रही थी और समीर भी भद्दी भद्दी गालियां निकाल रहा था।
उसने समीर के इस रूप की कभी भी कल्पना नहीं की थी।
"लम्पट।"सुधा सोचने लगी।
उसको सारा माजरा समझ में आ चुका था।
वह वापस मुड़कर जल्दी जल्दी सीढियों से उतरने लगी ।
*******
वापस घर पहुंची तो रात के सवादस हो चुके थे।
वह बच्चों के कमरे में गयी।दोनों बच्चे सो चुके थे।
सुबह के लिए दोनों की स्कूल ड्रेस प्रेस की हुई अलमारी के बाहर हेंगर पर लटक रही थीं ।नीचे जूते मोजे रखे हुए थे।
परेश ने सारा काम कर लिया था।
वह बेडरूम में आयी।वहाँ परेश सो रहा था।
साइड टेबल पर उसकी और परेश केसाथ बच्चों की फैमिली फोटो पड़ी थी वह उसको एकटक निहारने लगी।
उसके पास ही बच्चों की भरी हुई स्कूल फीस की रसीदें पड़ी थी।
उसके ऊपर एक रंग बिरंगा एनवेलप पड़ा था जिस पर लिखा था-
होम स्वीट होम!
उसने एनवेलप खोला।
उसके भीतर एक अग्रीमेंट की कॉपी थी और गणपति बिल्डर की तरफ से सुधा शुक्ला के नाम एक ग्रीटिंग कार्ड था जिसमें सुंदर अक्षरों में उसके नाम से थ्री बी एच के फ्लैट खरीदने पर बधाई का सन्देश उकेरा हुआ था।
जिसको ढूंढने के लिए वह भटक रही थी,उसका अपना स्वर्ग उसके पास ही था।
सुधा की आँखों में पश्चाताप के आंसू थे।
************