मंगलवार, 5 जून 2018

कस्तूरी भीतर बसे, मृग ढूंढे बन मांहि!




"मैं जा रहा हूँ,हनी!" मेन गेट से निकलते हुए परेश ने कहा।
सुधा ने लगभग जबरदस्ती ही एक औपचारिक मुस्कान ओढ़ते हुए हाथ हिलाया।
परेश कभी सुधर ही नहीं सकता था।
भीगे हुए तौलिए से बिस्तर का एक हिस्सा गीला हो चुका था।
उसके कपड़े बेतरतीब से कुछ कुर्सी पर और कुछ बेडरूम के दरवाजे पर पटके हुए थे।
'हजार बार समझा दिया पर दिमाग में डाले कौन,मैं नौकरानी जो मिल गयी हूँ।'सुधा कुढ़ते हुए बड़बड़ाने सी लगी।
'न तौलिया बाहर सुखाएँगे और न कपड़े वाशरूम में रखेंगे।साहबी चढ़ी हुई है।'
प्रेशर कुकर के जोरदार सीटी से उसका ध्यान रसोई में गया।
'हे,भगवान!चावल तो गल ही गए होंगे।' भागकर रसोई में गई और गैस बन्द कर दिया।
रजनी और शिखर स्कूल जा चुके थे।
 वह जल्दी जल्दी में तैयार होने लगी।
"शांता बाई, बर्तन ठीक से धोना।और ताला लगाना मत भूलना! मैं जारही हूँ।"उसने स्कूटी को किक लगाते हुए कहा।
स्कूल में छह घण्टे बिताने और घर की दोहरी जिम्मेदारी से सुकून तो था ही नहीं।ऊपर से परेश जैसा बोरिंग पति पाकर जिंदगी जितनी हो सकती है उससे भी बहुत अधिक नीरस थी।

पूरे रास्ते उसके मन में रात की बहस गूंज रही थी।
रात को नौ बजे तक इंतजार करने के बाद उसने कपड़े बदल लिए थे।वह जानती थी हमेशा की तरह आज भी परेश भूल चुका होगा।
उनका ला मेरियट में डिनर का प्रोग्राम था।
वह पूरे दिन उसके ही बारे में सोच रही थी।बहुत खुश भी थी।
वह सात बजे तैयार हो गयी थी। उसने अपनी पसंदीदा सिल्क की पिंक साड़ी पहन ली थी।ब्लेक बॉर्डर वाली उस साड़ी में वह बेहद खूबसूरत लगती थी।
साढ़े सात और आठ बज गए।फिर दीवार घड़ी ने नौ के घण्टे भी बजाए।
मगर वह नहीं आया।
फिर रात को साढ़े ग्यारह बजे परेश ने शराब के नशे में लड़खड़ाते हुए घर में प्रवेश किया।
"खाना बना के रख दिया है।सब्जी गर्म कर के रख रही हूँ।तुम खा लेना।मैं सोने जा रही हूँ।सुबह जल्दी उठना है ।"सुधा ने कहा।
"रुको तो जानेमन।आज की खुश खबरी तो सुनो।"परेश लड़खड़ाए शब्दों में बोला।
"आज तुम्हारे प्रॉमिस किये डिनर के इंतजार में दो घण्टे तक तैयार हो कर बैठी रही और तुम दारू पीने में मशगूल रहे यह खुशखबरी काफी है मेरे लिये।मुझे बख्श दीजिये और आप अपनी जिंदगी के आनंद लीजिये।यह कोई पहली बार तो है नहीं,हमेशा से चला आ रहा है।"वह लगभग चिल्लाते हुए बोली।,
"आज बैंक मैनेजर के साथ था।समय लग गया।"
"मैं छह महीने से बैंक मैनेजर  केसाथ होने के बहाने सुन चुकी हूँ।तुम्हे जब दारू पीनी होती है तो उसका नाम ले लेते हो।मैं भी पढ़ी लिखी हूँ,गंवार नहीं हूँ जो तुम्हारी इन बातों को  मान लूँ।"उसे गुस्सा आ रहा था।

"तुम भी अजीब हो,बरसों तक खून पीती थीं की खुद का मकान लेना है।और उसके लिए लोगों के नोहरे करूँ तो उसमे भी नुक़्श नजर आते हैं।मैंने तो पहले ही कहा था नया मकान खरीदना हमारे बस का नहीं है।जैसे तैसे बैंक से लोन पास करवा रहा हूँ तो भी तुम्हें मेरी दारू ही नजर आती है।"परेश जोर जोर से बोलने लगा।

सुधा ने गुस्से से तमतमाते हुए दरवाजा जोर से बन्द कर दिया।और बिस्तर में घुस कर सो गयी।उसे खुद पर रोना आ रहा था।परेश को तो खुद के सिवा किसी की परवाह ही नहीं है ।

बच्चों की फीस के लिए तीन बार फोन आ गया।रोज याद दिलाती हूँ पर वही शाम को कहना कि आज टाइम नही मिला कल करवा दूंगा।

स्कूल की वैन वाला छोड़ कर गए दस दिन हो गए।रोज बच्चे सिटी बस से स्कूल जा रहे हैं साहब को कोई परवाह नहीं।

स्कूल तक पहुंचते ही उसने चेहरे पर स्कार्फ हटाया।आंखों की भीगी कोरों को साफ किया और स्टाफ रूम की तरफ बढ़ गयी।

*********

कल रेखा मिली थी।उसकी कॉलेज की क्लासमेट।उसके पति के साथ स्कूल आई थी।
उसके पति प्राइवेट कम्पनी में जॉब करते हैं।अभी हाल ही में ट्रांसफर होकर आए है।

कपड़े पहनने और बातों का गज़ब सलीका।बड़ी अदब और धीमी आवाज में इस तरह बात करना कि किसी को भी मदहोश कर दे।
बिल्कुल कूल और मुस्कुराहट भरा चेहरा।एकदम हीरो की तरह।

उसे रेखा ईर्ष्या होने लगी।कॉलेज में ढीली ढाली, बेदम और सूखी सी रहने वाली रेखा का एटीट्यूड भी अब देखने लायक था।

उसने चाय की मनुहार की तो रेखा ने मना कर दिया।कहने लगी अभी होटल जाकर लंच लेना है।
रेखा के पति समीर ने कहा कि रेखा को चेकअप के लिए भी लेजाना है इसलिए आज चाय की माफी दे दें।

'चेकअप?'उसने पूछा।

'हाँ,रेखा को बी पी की शिकायत है।'समीर ने कहा,"और इसको मैं अकेले नहीं छोड़ सकता।"
***********
डेढ़ बजे स्कूल की छुट्टी के बाद वह स्कूटी से कुछ सौ मीटर ही गयी होगी कि एक सफेद कर ने उसका रास्ता रोका।

वह कुछ समझ पाती की उसमें से समीर मुस्कुराते हुए बाहर निकला और मीठी सी आवाज में बोला-नमस्ते सुधा जी।

सफेद डेनिम की जीन्स और डार्क ग्रीन शर्ट उसके लंबे और गोरे व्यक्तित्व पर गज़ब का जच रहा था।

उसको अपने स्कूटी पर होने ओर शर्म आयी।


उसने ड्राइवर को कहा कि तुम मेम की स्कूटी लेकर द गोल्डन कॉफी हाउस पर पहुंचो।

"सुधा जी,इफ यू डोंट माइंड,क्या हम आपके साथ कॉफी ले सकते हैं।"उसने पूछते हुए कार का गेट खोल दिया।

सुधा को कुछ सूझ ही नहीं पाया।

वह चुपचाप कार में बैठ गई।

काफी के दौरान वह बड़े अच्छे से उसकी बातें सुनता रहा।
सुधा के माइग्रेन की प्रॉब्लम के बारे में सुनकर वह कई नुस्खे बताने लगा।उसने अपनी पहचान के एक बहुत
अच्छे डॉक्टर के बारे में भी बताया।

सुधा भी अपनी आप बीती और रोजमर्रा की जिंदगी की शिकायतों की चर्चा करके काफी अच्छा और हल्का महसूस कर रही थी।

*********

रोज घर पर परेश से चिक चिक बढ़ने लगी।वह परेश की तुलना समीर से करने लगी।परेश में न धैर्य था न समीर वाला अदब।और न ही समीर वाला ड्रेसिंग सेंस।

अब वह रोज जल्दी से जल्दी घर से छूट कर स्कूल पहुंचने में लग जाती थी।

उसके बदले हुए व्यवहार से परेश भी परेशान था।पर अब वह भी चुप चुप रहने लगा।

स्कूल के बाद काफी हाउस पर घण्टो तक सुधा और समीर बातें करते रहते थे।

"सुधा,कल तुम स्कूटी मत लाना।मैं कल वैसे ही तुम्हारे घर के पास से ही निकलूंगा तो तुम्हें पिक कर लूंगा और दोपहर स्कूल के बाद छोड़ भी दूंगा।"उसने धीमी और मीठी आवाज में कहा।

हालांकि उसे थोड़ा अजीब लगा पर वह मना नही कर सकती थी।निश्चित ही उसकी ना समीर को हर्ट करती।

उस दिन दोपहर के बाद वह समीर की कार में थी।

उन दोनों ने काफी हाउस की उस टेबल पर बैठ कर घण्टो बातें की जिसके पास की खिड़की से आधा शहर दिखाई देता था।

"सुधा,मैं तुमसे एक बात कहना चाहता हूँ।"

"कहो!"

"मैं जानता हूँ कि यह नैतिक नहीं है।पर मैं तुमसे अटेच हो चुका हूँ।"समीर के चेहरे पर एक उदासी थी।

"चूंकि यह ठीक नहीं है,इसलिए आज मैं तुमसे हमेशा के लिए विदा लेने आया हूँ।"उसने कहा।
"आज के बाद हम कभी नहीं मिलेंगे।प्लीज मुझे माफ कर देना।"

सुधा का दिल बैठने लगा।

"पर हम अच्छे दोस्त हैं,समीर।"

"हाँ,सही कह रही हो तुम।पर मैं मन ही मन में तुम्हें चाहने लगा हूँ।इसमे तुम्हारी कोई गलती नहीं है।और मैं बदले में भी तुमसे कुछ नहीं चाहता हूँ।बस हम आज इसी वक्त एक अच्छे भाव के साथ एक दूसरे को हमेशा के लिए गुडबाय कह दें।ताकि इन मीठी यादों को हमेशा के लिए संजो कर रख सकें।"समीर की आँखों में आंसू थे।

सुधा स्तब्ध थी।उसके आँखों के सामने पिछले कुछ दिनों से आजादी और सुकून भरी यादों से बने महल ध्वस्त होने लगे थे।

"मुझे माफ कर देना पर यही हम सब के लिए ठीक रहेगा।"
समीर ने उसे उसके घर की गली पर छोड़ते हुए कहा।

सुधा भारी कदमों से घर की ओर बढ़ने लगी।उसकी आँखों के आगे से समीर का उदास और मासूम चेहरा ओझल होने का नाम ही नहीं ले रहा था।

घर पहुंच कर देखा तो परेश बच्चों को होमवर्क करवा रहा था।

बाई जी खाना बनाकर जाने की तैयारी रही थी।

वह बेडरूम से ड्रेसिंग रूम में जाकर कपड़े बदलने लगी।

सुधा अपने पर्स से मेकअप का सामान निकाल ड्रेसिंग टेबल की दराज में रखने लगी।तभी उसके हाथ में एक कागज का लिफाफा आया।
उसमे एक पत्र था।

समीर की राइटिंग देखकर उसका दिल जोर जोर से बजने लगा।

'प्रिय सुधा,

जानता हूँ,तुम्हे यह पत्र नहीं लिखना चाहिए।पर यह तुमपर है की तुम इसे पढ़ो,रखो या फाड़कर फेंक दो।तुम जो चाहे निर्णय करो मुझे मंजूर है।
मैं हमेशा के लिए यह शहर छोड़ कर जा रहा हूँ।
मैं तुम्हारे बिना अपने जीवन को नीरस और अस्तित्व हीन समझता हूँ।तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है।तुमसे एक अंतिम मुलाकात मुझे जीने का सहारा दे देगी।
इसलिए एक आखिरी बार तुमसे मिलना चाहता हूँ।और वह भी एक प्रेमी के रूप में।मैं ग्रीन प्लाजा होटल के रूम नम्बर 301 में मिलूंगा।

अगर तुम न चाहो तो मत आना।

सिर्फ तुम्हारा
समीर

सुधा का बांध टूटने को था।उसने पर्स उठाया और बाहर निकलने लगी।

गेट पर परेश को खड़ा देखकर वह थोड़ी हड़बड़ा गयी।

"रेखा की तबियत ठीक नहीं है,मैं उसके पास जा रही हूँ।"

"बहुत देर हो गयी है,तुम कहो तो मैं तुम्हारी मदद के लिए साथ चलूँ?"परेश ने पूछा।

"नहीं उसके हस्बैंड घर पर नहीं है उसको ठीक नहीं लगेगा।मैं संभाल लूंगी।"सुधा बोली।

उसने स्कूटी स्टार्ट की ओर ग्रीन प्लाजा की तरफ बढ़ गई।

रात के नौ बज चुके थे।वह ग्रीन प्लाजा पहुंची ।आधुनिकता और चका चौंध से भरा हुआ नव धनाढ्यों का मनोरंजन स्थल था होटल ग्रीन प्लाजा।

वह रिसेप्शन की तरफ बढ़ी।वह कुछ पूछ पाती कि रिसेप्शन पर पहले से खड़ी एक लड़की ने रिसेप्शनिस्ट से पूछा-"कैन आई मीट मिस्टर समीर कुलश्रेष्ठ।"

किसी दूसरी लड़की के मुंह से समीर का नाम सुनकर सुधा चौंक गयी।
"श्युर मैम,ही इस वेटिंग फ़ॉर यू ...रूम नम्बर 301...हियर इज अनादर की फ़ॉर यू।थर्ड फ्लोर, द लिफ्ट इज युर राइट साइड "
"थैंक यू।"
लड़की चाबी लेकर लिफ्ट की तरफ बढ़ी।सुधा भी उसके साथ लिफ्ट में घुस गयी।
तीसरे फ्लोर पर सुधा ने लड़की की विपरीत तरफ धीरे धीरे बढ़ने लगी।
लिफ्ट के पास ही 301 नम्बर रूम था।लड़की ने चाबी स्वेप की और रूम ने घुस गयी।सुधा भी मुड़कर रूम के दरवाजे के पास पहुंची।

दरवाजा खुला हुआ था।

समीर और वह लड़की जोर जोर से झगड़ रहे थे।लड़की उसे धोखेबाज कह रही थी और समीर भी भद्दी भद्दी गालियां निकाल रहा था।
उसने समीर के इस रूप की कभी भी कल्पना नहीं की थी।
"लम्पट।"सुधा सोचने लगी।
उसको सारा माजरा समझ में आ चुका था।

वह वापस मुड़कर जल्दी जल्दी सीढियों से उतरने लगी ।

*******
वापस घर पहुंची तो रात के सवादस हो चुके थे।

वह बच्चों के कमरे में गयी।दोनों बच्चे सो चुके थे।
सुबह के लिए दोनों की स्कूल ड्रेस प्रेस की हुई अलमारी के बाहर हेंगर पर लटक रही थीं ।नीचे जूते मोजे रखे हुए थे।
 परेश ने सारा काम कर लिया था।

वह बेडरूम में आयी।वहाँ परेश सो रहा था।

साइड टेबल पर उसकी और परेश केसाथ बच्चों की फैमिली फोटो पड़ी थी वह उसको एकटक निहारने लगी।

उसके पास ही बच्चों की भरी हुई स्कूल फीस की रसीदें पड़ी थी।

उसके ऊपर एक रंग बिरंगा एनवेलप पड़ा था जिस पर लिखा था-

होम स्वीट होम!
उसने एनवेलप खोला।
उसके भीतर एक अग्रीमेंट की कॉपी थी और गणपति बिल्डर की तरफ से सुधा शुक्ला के नाम एक ग्रीटिंग कार्ड था जिसमें सुंदर अक्षरों में उसके नाम से थ्री बी एच के फ्लैट खरीदने पर बधाई का सन्देश उकेरा हुआ था।

जिसको ढूंढने के लिए वह भटक रही थी,उसका अपना स्वर्ग उसके पास ही था।

सुधा की आँखों में पश्चाताप के आंसू थे।
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मंगलवार, 24 अप्रैल 2018

देह देखते हो


रिश्तों के जतन है
जिंदगी सुखन है
है प्रेम भीतर
और अपनापन है
जलन भी है यहां,
और एक चुभन है
हाँ,मेरे पास भी
मेरा अपना मन है

तुम न प्यार देखते
न ही नेह देखते हो
तुम तो सिर्फ मेरी
देह देखते हो।

थकता हुआ जरा सा
विश्राम चाहता है
मिल जाए गर जरा
आराम चाहता है
खुद के साथ गुज़ार लूं
मेरा ही अकेलापन है
ताउम्र मेरे साथ होगा
मेरा अपना बदन है।

मेरी भी अपनी इच्छा है,
इक मेरी भी निजता है
पर कहाँ तुम सब ये देखते हो
तुम तो सिर्फ मेरी देह देखते हो।

इंसान ही हूँ मैं
सिर्फ तन नहीं हूं
ताले न लगा मुझ पर
मैं धन नहीं हूं
विवश गर हूं मैं तो
उसमें तेरा दोष है
मुझे जो बांधती है
सिर्फ तेरी सोच है
जो मैं नहीं हूं
तुम उसे देखते हो
तुम तो सिर्फ़ मेरी
देह देखते हो।

तुम्हें है जो देखना
तुम वही देखते हो
मेरे भीतर आग भी
तुम नहीं देखते हो
प्रचंड पवन मन की
न तुम कहीं देखते हो
न आंखो से बरसता
तुम मेह देखते हो
तुम तो सिर्फ मेरी
देह देखते हो।

प्रकाश सिंह

सोमवार, 5 मार्च 2018

रफ कॉपी


1.
धीरेन ने बाबूजी की अलमारी खोली और सारे कागजात,रजिस्ट्रियां,जीवन बीमा की रसीदें, लोन्स के पेपर्स,बैंक की पासबुकें आदि बाहर निकाले।

बाबूजी ने सारी जिम्मेदारियों को बहुत सलीके से निभाया था।और जीवन के बाद भी कोई काम अधूरा नहीं छोड़ा था।हाउस लोन, पर्सनल लोन,बिजनेस लोन, मॉर्गेज लोन यहां तक कि सी सी लिमिट का भी बीमा करा रखा था।दिनकर और उसको एक पैसा भी चुकाना नहीं था।सारी प्रोपर्टी और बिजनेस की लोन्स की आजतक की किश्तें बाबूजी ने चुका दी थी और बाकी बची उनके इंश्योरेंस से भरदी जाएगी।

सभी कागजातों के नीचे पॉलीथिन के बैग में एक कॉपी नजर आयी।उसने उसको बाहर निकाला।यह एक बड़ी साइज की नोटबुक थी।उसके ऊपर चेतक घोड़े का चित्र बना हुआ था।और लिखा हुआ था-
'रफ कॉपी।'
नीचे बाबूजी का नाम लिखा हुआ था-
पन्नालाल सहाय'प्रभुदास',बी बी ए सेकंड ईयर।
प्रभुदास उनका तख़ल्लुस था।उनकी एक दो कविताएँ प्रभुदास के नाम से समाज की पत्रिकाओं में छपी भी थीं।

उसने पहला पेज खोला।उसपर एक परिवार का चित्र था।यह उसका परिवार नहीं था।यह उसके बाबूजी का परिवार था।उसके बाबूजी बहुत अच्छे चित्रकार भी थे।यह उसको बाबूजी के चौथे की बैठक में आये उनके क्लासमेट इन्दर अंकल से पता चली थी।
इस तस्वीर को उन्होनें बुआ की शादी के एक ग्रुप फ़ोटो से पेंटिंग के रूप में बनाया था।बीच में बुआ और फूफाजी शादी के जोड़े में कुर्सी पर बैठे थे।पास में दोनों ओर दोनों दादीजी,फिर दोनों ताई और माँ,माँ की गोद में दिनकर भैया थे।जमीन पर दरी पर बाबूजी के कजन तीनो बुआ और दोनों चाचा बैठे थे जिनकी उस समय शादी नहीं हुई थी।
बड़े ताऊजी के लक्ष्मण भैया और राम भैया और छोटे ताऊजी के गजेंद्र भैया और मोहन भैया बुआ के पीछे खड़े थे।और सबसे पीछे दोनों दादाजी, ताऊजी खड़े थे।
साइड में चेयर पर बाबूजी बैठे थे।उनकी गोद मे छोटा सा धीरेन बैठा।बाबूजी ने उसे हाथों में समेट रखा था।और धीरेन अपनी नन्ही उंगलियों से बाबूजी की हथेलियों को सहला रहा था।
ये बड़ा और संयुक्त परिवार बाबूजी का सब कुछ था।और जीवन के अंतिम समय तक वो इसके मोह से बाहर नहीं आ सके।
बचपन बड़ा भरमाने वाला होता है।बचपन के जिम्मेदारी से मुक्त जीवन में आप जिस दुनियाँ और जिन लोगों से प्यार कर बैठते है उसका प्रभाव ताउम्र  एक गहरे नशे की तरह आपके लिए केवल उसी बचपन की दुनियां को सच के रूप में स्थापित कर देता है।और फिर उम्र के अंतिम पड़ाव तक आप कब की मर चुकी उसी बचपन की दुनियां को फिर से जीवित करने की असफल कोशिश करते रहते है।
धीरेन ने रफ कॉपी के कुछ पन्ने पलटे ।उसमे बी बी ए के क्लास रूम के लेक्चर्स के नोट्स थे।सभी सब्जेक्ट्स के।बेतरतीब और पेज पर गोले और बॉक्सेस बनाए हुए।अब कुछ भी मतलब नही था उनका।
फिर ये रफ कॉपी बाबूजी ने इतनी संभाल के क्यों रखी?
धीरेन सोचने लगा।
शायद परिवार की उनकी खुद की बनाई पेंटिंग की वज़ह से।
फिर उसे देखा कि उस रफ कॉपी में ऊपर और नीचे और हर पेज के छूटे हुए हाशिये पर कुछ कोटेशन लिखे हुए थे।तारीख के साथ।
शायद बाबूजी ने अपनी पेंटिंग की वजह से वह रफ कॉपी संभाल के रखी थी और बाद में हर पेज पर ऊपर,नीचे और हाशिये पर छोटे छोटे कोटेशन के रूप में अपनी फिलॉसफी या संक्षिप्त जीवनी लिखते थे।
धीरेन ड्राइंग रूम के सोफे पर बैठ गया और उसे पढ़ने लगा।
--------------------
2.
'यह सोचना महत्वपूर्ण है कि किस के लिए बनना है बनिस्पत इसके कि क्या बनना है।' -23.11.84
बाबूजी के लिए संयुक्त परिवार सबकुछ था।कई मौकों पर बाबूजी असम्भव सी शीघ्रता और ऊर्जा से परिवार के काम करते थे। धीरेन को याद था कि वे कभी भी खुद के बच्चों के कपड़ो और खिलौनों की परवाह न करते हुए भी दूसरे बच्चों केलिए एक एक चीज ले आते थे।उस समय दोनों दादाजी की शहर की दुकान के आगे सौ फीट चौड़ा मार्ग निकला।दुकान का कुछ हिस्सा भी उसमे चला गया।पर दुकान का बड़ा गोदाम अब फ्रंट में आ गया था।और वास्तु के हिसाब से भी अब वह सिंह मुखी हो गयी थी।बाहर से चालीस फ़ीट चौड़ी और भीतर से तीस फ़ीट।
सहाय का जनरल स्टोर शहर की नामी दुकान बन गयी थी।छोटे दादाजी और दोनों ताऊजी उस पर बैठते थे।दिन का गल्ला हज़ारों में था।और महीने की उधारी का किराना अलग था ।
सारा हिसाब किताब दोनों ताऊजी के पास था।
मां रात को अकेले में बाबूजी को सुनाती थी।बडी भाभी के सेट लाया है।जेठजी के बच्चों के नए कपड़े लाए गए हैं।
एक दो दिन में ही उसका स्रोत पीहर का कोई शुभ अवसर बन जाता।
बी बी ए की पढ़ाई के अनुभव से बाबूजी छोटे दादाजी और भाइयों को बाजार के महंगे ब्याज पर पैसा लेने से मना करते रहते थे।पर उस वक्त बाबूजी को कोई पूछता ही नहीं था।
और बाबूजी जी जान से माल गोदाम में स्टॉक को संभालते,कभी मुनीमों की चोरियां पकड़ते तो कभी होलसेलर से सौदेबाजी कर के भाव तोड़ने में लगे रहते थे।
उनका काम धंधे के लिए लाभदायक तो था पर किसी को दिखता नहीं था।
फिर बुआ की शादी और बड़की बुआ की शादी में बहुत खर्चा हुआ।ऊंचे ब्याज के कर्ज से आर्थिक स्थितियां बुरी होने लगी थी।ऊपर से ताऊजी ने दाल का स्टॉक कर लिया था जिसके लिए बाबूजी ने मना किया था।पर बाबूजी की किसी ने नहीं सुनी थी।फिर एकदम दालों में मंदी आ गयी और पूरा परिवार आर्थिक संकट में आ गया।
लोग तकाजे करने लगे।दादाजी ने  खेत बेच कर कुछ रकम चुकाई थी।
'पिताजी,आप खेत भले बेच दें पर बाजार का ब्याज हमें खा रहा है।इससे कुछ नहीं होगा रकम फिर बढ़ जाएगी।'बाबूजी ने कहा।
'तो छोटे का भी खेत बेच कर पूरी रकम चुका लें।'दादाजी ने छोटे दादाजी से पूछा।
छोटे दादाजी यह कहकर नट गए कि दालों का स्टॉक आपके बेटे ने किया था।वे अपनी ज़मीन क्यों बेचें।
सही कहा है -टोटा(नुकसान)लड़ता है और टोटा लड़वाता है।
बाबूजी उस दोपहर को सरकारी बैंक के मैनेजर को घर ले आये।बची रकम का लोन पास करवाया।सी सी लिमिट भी बनवाई।जो पैसा आया वह बकायादारों को पहुंचाया गया।और जो खेत बिका वह बाबूजी के हिस्से में आना था।पर बाबूजी का सर्व प्रिय परिवार आर्थिक संकट से बाहर आ गया था।
बाबूजी जो कुछ भी बनना चाहते थे वह इस परिवार के लिए बनना चाहते थे।सो उन्होंने अपने नुकसान की जरा भी परवाह नहीं की।
हां मां के ताने अब और तीखे हो गए थे।
-----------------
3.
'प्रेम,सचाई,परोपकार और दूसरों की मदद करना ईश्वरीय कार्य है जब आप इनको करते हैं तो आपके पास ईश्वरीय शक्तियां आ जाती हैं।'-14.5.1989
छोटे दादाजी दुकान का एक तिहाई हिस्सा लेकर अलग हो गए थे।दोनों ताऊजी अब भी दुकान पर बैठते थे।अक्सर शाम को जब परिवार इकट्ठा होता तो छोटे दादाजी और दोनों ताऊजी व्यापार में अपनी सफलताओं का किस्से सुनाते।और उसमें बाबूजी का नाम नहीं होता था।
बाबूजी अब प्रदेश की राजधानी चले आये।वहां बैंकिंग और बिजनेस के अपने नॉलेज से मित्रों और रिश्तेदारों की मदद करने लगे।ताऊजी के बच्चे और मंझली और छुटकी बुआ के साथ दोनों चाचाजी भी हमारे साथ रहने लगे।होली दीपावली और छुट्टियों में पूरा परिवार साथ होता था।
एक छुट्टियों में दोनों ताऊजी ने दुकान में बाबूजी को हिस्सा देने से मना कर दिया।और दो लाख रुपये हिस्सा अलग करने के दादाजी के सामने रख दिये।
बाबूजी गुस्से में तमतमा गए।
वे घर से निकले और दो घण्टे बाद छः लाख रुपये दोनों ताऊजी के सामने रख दिये।
'अब भाव तो आपने कर दिए है तो ये लिजिये पैसे और आप दुकान छोड़ दीजिये।आपने मुझे पागल समझ रखा है जो आप मुझे दूध में मक्खी की तरह निकाल दोगे और मैं चुप रहूंगा।'बाबूजी बोले।
दोनों ताऊजी बगलें झांकने लगे।
फिर दादाजी ने बाबूजी को समझाया।
बाबूजी चाहते थे कि उनकी बचपन की यादों से जुड़ी उस दुकान में उनका भी हिस्सा बना रहे।पर दोनों ताऊजी तैयार नहीं हुए।
जब दादाजी ने हिस्से के बदले में और ज्यादा रुपयों की बात की  तो बाबूजी रो पड़े।
'पिताजी,मैं पैसों के लिए यह सब नहीं कर रहा हूँ।पर आप मुझे नहीं समझ पाओगे।'
फिर उन्होंने सिर्फ एक लाख रुपये लिए और अपना कीमती हिस्सा हमेशा के लिए छोड़ दिया।
अब बाबूजी हमेशा के लिए शहर आ गए।पर परिवार अब भी साथ था।अपने मन की कड़वाहट उन्होंने कभी बच्चों के सामने नहीं आने दी।
राजधानी में उन्होंने पचास हजार में एक प्लॉट खरीद और उस पर हाउस लोन लेकर एक तीन कमरे का मकान बनाया।बाबूजी की बिजनेस में बुध्दि बहुत तेज चलती थी।उनके संपर्क भी कई बड़े लोगों से थे।बस वे बिना शर्त और अपेक्षा के दूसरों के काम करते रहते थे।उसका फायदा भी मिला।उन्होंने कई लोगों को राजधानी में मकान,दुकान और रोजगार दिलवाए।
फिर एक दिन उनके घर पर पार्टी में शहर के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट आये।बातों बातों में उन्होंने बाबूजी को नई आने वाली स्कीम में कॉमर्शियल प्लाट खरीदने की राय दी।
स्कीम राजधानी से थोड़ी दूर थी पर वहां से एक्सप्रेस वे निकलने की संभावना थी।
वहाँ उस समय कोई इन्वेस्टमेंट करने को तैयार नहीं था।पर डी एम की सलाह से बाबूजी ने वहाँ पचास हजार में कॉमर्शियल कॉर्नर प्लाट के लिए अप्लाई कर दिया।ज्यादा प्रचार नही होने से लॉटरी के लिए प्लाट से कम एप्लिकेशन लगी थी।सो बाबूजी को प्लाट अलॉट होगया।डी एम साहब ने यहां उनका थोड़ा फेवर किया और एक्सप्रेस वे के नजदीक वाला प्लॉट दिलवा दिया ।
फिर आर्थिक विकास ने अचानक प्रदेश और राजधानी दोनों के रूप को बदल दिया।बाबूजी का प्लॉट और मकान अचानक प्रदेश के सबसे पाश इलाके में शामिल हो गए।
बाबूजी ने उस प्लॉट को कॉमर्शियल कॉम्प्लेक्स में बदल दिया ।मुख्य दुकाने खुद के बिजनेस के लिए रखी ।आधी किराए पर उठा दी और बाकी बेचकर लोन चुका दिया।
ईश्वरीय कृपा बाबूजी के साथ थी ।
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4. 
'परिवार अपने नकारा और गैरजिम्मेदार सदस्यों की अकर्मण्यता से प्रभावित नहीं होते हैं,अगर सक्षम सदस्य अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हट जाए तो अवश्य टूट जाते हैं।'-17.06.1991
छोटे दादाजी वाले दोनों चाचा दारू और जुए के नशे में पड़ गए थे।सारे व्यवसाय की जिम्मेदारी छोटे दादाजी जो अब पैंसठ वर्ष के हो चुके थे सम्हाल रहे थे।तीनो बुआओं की शादी करने के लिए बाबूजी ने प्रदेश छान मारा।तीनो के रिश्ते एक से बढ़कर एक खान दान में किये।धूम धाम से शादियां की और सारा खर्च बाबूजी ने उठाया।
दोनों भाइयों के आये दिन झगड़े करने और जेल में जाने की घटनाएं हुई।पर बाबूजी ने अपने सम्पर्को का इस्तेमाल करके उनकी जमनाते करवाई।
पर बाबूजी के इन प्रयासों से किसी को फर्क नही पड़ता था।उल्टे दोनों ताऊजी और छोटे दादाजी का परिवार भरपूर ईर्ष्या करने लगा।
गांव में पुश्तैनी जमीन में तो बाबूजी का हिस्सा दादाजी ने पहले ही बेच दिया था ।दोनों छोटे चाचाओं ने हवेली में बाबूजी के हिस्से पर भी कब्जा कर लिया ।
बाबूजी मन मसोस कर रह गए।उन्हें जबर्दस्ती उनके गांव से निकाला जा चुका था।
उस दिन बाबूजी बहुत उदास हुए थे।
"मैंने तो पहले ही कह दिया था।आप तो परिवार की भक्ति में डूबे हुए थे।"मां बोली।
"लक्ष्मी, इस समय मुझे तानों की नहीं सहारे की जरूरत है।" बाबूजी हताश से बोले।
"जब बड़े आदमी बन कर यश लूट रहे थे तो मुझे कभी सुना ही नहीं था।अब जब लुट गए तो सहारे में मुझे ढूंढ रहे हो।भुगतो अपने कर्मो को।"मां ने तमतमा कर कहा।
"फिर क्या फर्क है तुम लोगों में और उनमें?"बाबूजी भड़ककर बोले ।
"कोई फर्क नहीं है।मेरे बच्चों के भविष्य को चूल्हे में झोंककर मुझे उपदेश मत दो।आखिर संयुक्त परिवार संयुक परिवार करते रहे आज तक।क्या मिला हमें।तुस भर गहना भी नहीं बनाया।अब जब अपनो ने लूट लिया तो मुझसे उम्मीद मत रखो भरपाई की।"मां जैसे सारी भड़ास निकाल देना चाह रही हो।
बाबूजी का मन खिन्न हो चुका था।वे चुपचाप घर से बाहर निकल गए।
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धीरेन मां के सम्पर्क में रहता था।वह मां की बातों से सहमत था।उसकी नजरों में भी बाबूजी का परिवार प्रेम एक भावुक मूर्खता थी।
बाबूजी ने दिनकर भैया को बिजनेस स्कूल में दाखिला दिलवाया।बहुत बड़ी रकम खर्च की थी।धीरेन को भी आई आई एम्स की बड़ी तैयारी करवा कर दाखिला दिलवाया।गाहे बगाहे बाबूजी अपने अनुभव को दोनों बच्चों को बांटते रहते थे।शायद ही कोई पेरेंट अपने बच्चों को जीवन मे इतना अच्छे से तैयार करता है जैसा कि दिनकर और धीरेन को उसके बाबूजी ने तैयार किया था।
उधर पूरा बाकी परिवार अब बाबूजी का पारिवारिक बॉयकॉट करने लगा था।समाज मे बाबूजी और मां को पैसे के घमंड  में चूर प्रचारित किया गया।
और माँ के ताने भी बाबूजी के लिए कभी कम नहीं हुए।
बाबूजी ने अब चुप रहना सीख लिया था।
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5.
"मन बालक है,भावों की पीड़ा को अब तक समझा कौन है?
जब चलना है जीवन के पथ पर तो सबसे सुंदर मौन है।"
29.11.98
दोनों छोटे चाचा एक दिन उनके घर आये।शाम को बाबूजी दुकानों को मंगल कर घर पहुंचे।
थोड़ी बहुत गांव की समाचारों को पूछने के बाद दोनों चाचा बिजनेस के लिए उधार मांगने के मूल मुद्दे पर आ गए।
बाबूजी जानते थे कि दोनों जुआरी कुछ नही कर सकते तो उन्होंने मना कर दिया।
"बड़े भाई साहब,लगता है पैसे कमा कर आप को ज्यादा घमण्ड हो गया है।और आप भूल रहे हैं कि ज्यादा कमाई पर इनकम टैक्स वालों की नजर होती है।"बड़े चाचा बोले।
"अच्छा, तो अब तुम मुझे धमकी देने जैसे काबिल तो हो ही गये हो।मैं तो नाहक ही चाचा के परिवार की फिक्र करता रहा इतने दिन।"बाबूजी ने तीखी आवाज में कहा।
"नही नही भाई साहब।मेरा दोस्त इनकम टैक्स में इंस्पेक्टर लगा है।वह कह रहा था कि आप के भाई साहब के इनकम टैक्स का सर्वे हो सकता है।तो हमने देखा कि कुछ ले देकर मामला निपटा दिया जाए।बात बढ़ाने से क्या फायदा।?"चाचा ने कहा।
अब तो बाबूजी का गुस्सा सातवें आसमान पर था।उसके भाई उसको ही ब्लैकमेल करने आये थे।
बाबूजी ने दोनों को बुरी तरह लपका कर घर से बाहर कर दिया।
फिर कुछ दिनों बाद इनकम टैक्स का छापा पड़ा।पर बाबूजी ने एक एक पाई का हिसाब तैयार कर रखा था।वक्त से बहुत आगे चलते थे बाबूजी।
पर कई दिन तक धँधा चौपट रहा।
इस घटना के बाद गांव में कुटम्ब में एक शादी में जाना हुआ।तो दोनों ताऊजी के परिवार और चाचा जी के परिवार ने जबरदस्त दुष्प्रचार कर रखा था।
"घमंडी का सिर नीचा होता है।''
"पाप के पैसों का यही अंजाम होता है।"
"हमारे हिस्से के पैसों को लूट कर गया था।भगवान करनी का फल तो देगा ही।"
जितने मुंह उतनी बातें।
इतना मन कड़वा हुआ कि शादी बीच मे छोड़कर बापस आना पड़ा।
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6.
"पात्रता वहीं है जहां प्रेम है।जहाँ प्रेम है प्रभु वहीं है।"
-14.07.2003
बाबूजी का मन रिश्तों से उठ गया था।अब वह कर्तव्य के लिए ही व्यवसाय कर रहे थे। दिनकर और धीरेन वेल सेटल हो चुके थे।दोनों तीन तीन लिमिटेड कम्पनियों के मालिक थे।पर बाबूजी अपने पूजा पाठ के बाद सिर्फ दुकानों को संभालने चले जाते।
अपनी आय से उन्होंने दो स्कूल और एक कॉलेज खोल दिये थे।गरीब बच्चों को शिक्षा देने का मिशन बना लिया था।आने वाले दस बारह वर्षों में शहर और प्रदेश में उनका नाम हो गया था।कितने ही होनहारों ने उनकी सहायता से अपने भविष्य का निर्माण किया था।
बाबूजी के दिल मे तो सिर्फ निश्छल प्रेम था।उसको अपने लोग पहचान नही सके तो वह निर्मल झरने की तरह सारे संसार को तृप्त करने लगा था।
गांव में दोनों ताऊजी और चाचाजी ने उनको विलेन बना रखा था।बुआएँ भी कोसने में कम नहीं थी।पर अब बाबूजी न तो खुद के परिवार की और न ही भाइयों के परिवार की परवाह करते थे।
घर मे भी माँ के कड़वे बोलो से दोनों बच्चों में यह बात घर कर गयी थी कि बाबूजी ने उनके लिए कुछ भी नही किया।
धीरेन भी यही समझता था कि उसके बाबूजी को सम्मान की चाह है।और इसके लिये उन्होंने मां और बच्चों के हिस्से को मूर्खतापूर्ण तरीके से खो दिया।
समय के साथ बाबूजी का अधिकांश समय या तो पूजा पाठ में बीतता था या सामाजिक कार्यों में।बच्चों और माँ के साथ संवाद सीमित होता गया।
दिनकर और धीरेन  भी अपने कार्यो और परिवार में व्यस्त हो गए।मां भी बच्चों और पोते पोतियों के साथ खुश थी।
और बाबूजी?
वे अपनी अलग दुनिया मे अकेले थे।
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7.
"रफ कॉपी एक ऐसी नोट बुक होती हैं जिसका उपयोग हर विषय के लिए किया जाता है।और उसके प्रति तनिक भी कृतज्ञता नही दिखाई जाती है।रद्दी में बिकने वाली पहली सामग्री होती है रफ कॉपी!जीवन मे कुछ लोगों को सिर्फ रफ कॉपी की तरह उपयोग में लिया जाता है।उनके प्रति कोई कृतज्ञ नहीं होता है।"
-18.05.2017
बाबूजी की रफ कॉपी के अंतिम पन्ने पर यह पढ़कर धीरेन अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया।
अपनी अंतिम सांस लेने से महीने भर पहले उन्होंने यह लिखा था।
उस दिन दिनकर भैया बिजनेस डील के चक्कर मे त्रिवेंद्रम गए हुए थे।और वह दिल्ली।
बाबूजी को हार्ट अटैक हुआ था।माँ अपनी मौसी की लड़की बहन के यहां थी।बाबूजी के शेड्यूल के बारे में तो कोई जानकारी ही नही रखते थे।
सब अपने आप मे मस्त थे।
घर मे पूजा पाठ में बाबूजी काफी देर से उठे ही नहीं।
धीरेन की पत्नी नम्रता ने सबसे पहले यह भांपा कि बाबूजी की पूजा में सांस बड़े अजीब तरह से उखड़ रही है।
उसने नौकर से मदद लेकर बाबूजी को बिस्तर पर लिटाया और डॉक्टर को बुलाया।
थोड़ी देर में बाबूजी को आई सी यू में भर्ती कर लिया।
शाम तक धीरेन भी हॉस्पिटल पहुंच गया।दिनकर भी अगली फ्लाइट जा इंतजार करने लगा।
बाबूजी की हालत बिगड़ने लगी।और थोड़ी देर में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया।
धीरेन ने यह सूचना गांव में दोनों ताऊजी,बुआजी और चाचाजी को दी।पर सबने कोई न कोई मजबूरी बताई ।और कहा कि वे तो चौथे पर ही पहुंच पाएंगे।
ऐसे मौके पर दिनकर,धीरेन और उसके परिवार वाले बिल्कुल तैयार नही थे।कोई यह बताने वाला भी नही था कि ऐसे वक्त में क्या करना है।
मगर तभी अचानक हॉस्पिटल में लोगों का हुजूम उमड़ने लगा।जिसको भी खबर मिली वह भागता हुआ वहाँ पहुंचा।
कई बड़े बड़े अफसर,नेता,समाज सेवक पहुंच रहे थे।सोशल मीडिया पर प्रसिद्ध समाज सेवी पन्नालाल सहाय उर्फ बाबूजी के निधन की खबर आग की तरह फैल गयी।वे परिवार जिनके बच्चों की शिक्षा बाबूजी ने दिलवाई।वे डॉक्टर,प्रोफेसर, लेक्चरर,और अफसर जिन्होंने बाबूजी की मदद से अपने सपने पूरे किए।
टी वी और मीडिया में भी यह खबर प्रमुखता से आने लगी।
सरकार ने शहर की स्कूलों और दफ्तरों की छुट्टी घोषित कर दी।
अंतिम संस्कार के समय सैकड़ों लोगो की आँखों मे आँसू थे।ये वो लोग थे जिनसे उनका कोई पारिवारिक रिश्ता नहीं था सिर्फ इंसानियत और प्यार का रिश्ता था।
बाबूजी दुनिया मे सिर्फ प्यार की तलाश में जिंदगी बिता देने वाले एक निश्छल और सच्चे इंसान थे।
धीरेन ने रफ कॉपी को बन्द किया।और आंख बंद कर उस पर अपनी उंगलियों को फिराने लगा।उसको लगा कि बरसो बाद वह फिर बाबूजी की गोद मे बच्चा बनकर बैठा है और बाबूजी ने उसे अपने हाथों में समेट रखा है।
और धीरेन की नन्ही उंगलियां बाबूजी की हथेली को सहला रही थी।
प्रकाश सिंह।'

गुरुवार, 9 अप्रैल 2015

मोम सी तुम आती नजर,बस पिघलती नहीं

http://prakashpakhi.blogspot.in/2015/04/blog-post_9.html?m=1

परवाज़ ब्लॉग पर नई रचना-मोम सी तुम आती नज़र बस पिघलती नहीं।

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

परवाज पर नई रचना-आसमान पे मन सवार है


आसमान पे मन सवार क्यूँ
prakashpakhi.blogspot.comhttp://prakashpakhi.blogspot.in/2015/04/blog-post.html?m=1

सोमवार, 17 दिसंबर 2012

एक्जिट पोल और मेरी नेट पर वापसी

                                

आज गुजरात के एक्जिट पोल टी वी पर आ रहे थे।नरेन्द्र मोदी जी को बधाई कम से कम एक्जिट पोल में तो भारी  विजय मिली। मैं 21 साल से एक्जिट पोल टी वी पर देखता आया हूँ। भारत में करीब हर बार इन सर्वेक्षणों ने निराश किया है।मुझे इसकी वजह यह नजर आती है भारत में सर्वे वैज्ञानिकता से परे होते है।कई बार सर्वे करने वाले संगठन अपने हितों के लिए खेल जाते है।कई बार प्रश्न वस्तुनिष्ठ नहीं होते है।और सबसे ख़ास बात यह है कि जब प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होते है तो भारतीय मानसिकता को एक तरफ रखते हुए यह मान लिया जाता है कि जो उत्तर दिए गए है वही उत्तर देने वालो का अंतिम निष्कर्ष है।जैसे हर सर्वे में जब लोगो को ये पूछा जाता है कि  आप किसको मुख्य मंत्री या प्रधान मंत्री के लिए पसंद करते है,तो भारत में लोग यह उत्तर दे देते है कि कौन वर्तमान प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री है।इस लिए हर सर्वे में वर्तमान सरकार का नेताहमेशा ज्यादा मत ले जाता है।इसी प्रकार  लोग वर्तमान शासक के  एक्जिट पोल में  अज्ञात कारणों वर्तमान शासक  को ज्यादा  वजन दे देते है।वर्तमान में  गुजरात  के नतीजे भी चौंकाने वाले हो  सकते है।गुजरात में आज एक्जिट पोल सर्वे ने सभी चैनलों में बी जे पी को 116 से 140 सीट  दी है। भगवान  से प्रार्थना करता हूँ कि  इस बार वैज्ञानिक सर्वे  की शुरुआत हो जाए। वर्ना  सट्टा बाजार सर्वे वालों से अधिक सही निकलेगा।
  पिछला वर्ष संघर्षों का वर्ष रहा ...पर वर्ष के अंत में ईश्वर ने मुझे विवाह की वर्षगाँठ पर पदोन्नति का उपहार दिया।मेरे ईश्वर तेरा बहुत बहुत शुक्रिया कि  तुमने रहमत की बरसात की।और इससे भी बढ़कर तुमने मेरे लिए दुआ करने वाले इतने दोस्त दिए और उनकी दुआ क़ुबूल की।मेरे दोस्तों और शुभचिंतको !मैं आपका आभारी हूँ और मेरी आने वाली जिन्दगी हमेशा मुझे आपकी दुआओं का अहसानमंद बनाए रखे।   
आपका 
प्रकाश पाखी 

बुधवार, 30 मार्च 2011

क्या भारत पाक का मैच फिक्स है?



कल अखबार में पढ़ा था कि सटोरियों के अनुसार मैच भारत जीतेगा.परन्तु अगर तेंदुलकर ने शतक लगाया तो भारत हार जाएगा.अभी मैच देख रहा हूँ और मुझे बड़ी निराशा हो रही है.पाकिस्तान की टीम तेंदुलकर के पाच केच छोड़ चुकी है.तेंदुलकर ७४ रन बना चुके है.धोनी जरूरत से ज्यादा धीमा खेल रहे है.मैं यह पोस्ट केवल इसलिए लिख रहा हूँ कि कही सटोरियों की बाते सच न हो जाए.तेंदुलकर के कैच छोड़ने के पीछे कारण हो सकता है कि पकिस्तान की टीम सट्टेबजो के चुंगल में है.वह या उसके कुछ खिलाड़ी सट्टेबाजो के संपर्क में है वे शायद कैच छोड़ कर तेंदुलकर को शतक बनाने देना चाहते है ताकि टीम पर मैच हरने की मजबूरी न आये.अब अगर अखबार में लिखी भविष्य वाणी (सटोरियों) सच हो तो मुझे एक खेल प्रेमी के रूप में निराशा होगी. 
  अब तेंदुलकर बिना सेकड़ा बनाए आउट हो गए है....तो भारत कि जीत पक्की.