हफ्ते के पहले दो दिन व्यस्तता के चरम में बीते.आठ तारीख को मुख्यालय मीटिंग में हुक्म मिला की हर हाल में कम्प्यूट्राईजेशन बुधवार तक शुरू होजाना चाहिए.हालांकि हम इस तकनीक में अल्पज्ञानी ही है पर विभाग तो अभी मध्यकाल से निकल कर आधुनिक काल में प्रवेश कर रहा है तो हम अन्धो में काने राजा की तरह है और हमारे बिग बॉस ने पूरा यकीन दिलाया कि उन्हें मुझसे भारी उम्मीदें है.वैसे तो ऑफिस का काम विभाग के उद्भव के समय से लगभग एक सौ बीस गुना बढ़ गया है और हमारे कार्यालय में कुलजमा पांच बाबूजी कम्पूटर ऑपरेटरों के भरोसे गाडी गुडा रहे थे.पर नए सिस्टम में सारा काम बाबूजी को अपने हाथों से करना था.अलग यूजर नेम और पासवर्ड कि प्रणाली मानो बैंको से निकल कर हमारे कार्यालय में प्रवेश कर रही थी.मैंने भी हमारे फौजी अधिकारी भाइयों से प्रेरणा लेते हुए हमारे सबसे कमजोर बाबूजी को सबसे अधिक काम सौंप दिया और उसका साथ देते हुए उसके साथ अपनी कुर्सी लगा ली(अन्यथा वे अपना यूजर नेम और पास वर्ड ओपरेटर को दे सकते थे)...कम्पूटर के सामने बैठते ही बाबूजी ने ऐसी शक्ल बनाई कि जैसे वे बुक्का फाड़ कर रोना चाहते हों. खैर,आधुनिकीकरण कि शुरुआत हो गई.
तभी पी के सर का फोन आया.वे काफी समय से गुवाहाटी चलने का आग्रह कर रहे थे.इस बार भी मैंने वही जवाब दिया जो ऑफिस के कार्यो में व्यस्त होते समय अक्सर देता हूँ--हाँ,सर!बिलकुल..जब आप कहेंगे चल पड़ेंगे.और फोन रखते ही सब भूल गया.शायद यह सोच कर कि हो सकता है उनका ही प्रोग्राम केंसिल हो जाए.फिर अपना ध्यान ऑफिस में नए सिस्टम लागू कराने में लगा लिया.रात को साढ़े ग्यारह बजे कुल मिलाकर सेंतीस रजिस्ट्रेशन हुए.घर पंहुचा तो ठन्डे खाने के साथ श्रीमती की डांट खाने को मिली.मिड नाईट चिल्ड्रन को पढ़ते आँख लग गई.सुबह जल्दी उठकर ट्रेफिक सर्वे किया.और प्रशासन के अधिकारियों से डिस्कस कर के दस बजे ऑफिस पहुँच कर बाबूजी के पास कुर्सी लगा ली.
दिन भर की स्थिति यह थी की सौ के करीब लोग अपने काम के लिए आफिस में इकट्ठे हो चुके थे ...मैंने पूरे धैर्य से उनको झेला...बाबूजी के पास बैठने से आज का काम आज हो गया था..शाम को चार बजते शहर का मीडिया मेरे ऑफिस में आ धमका ..पर शुक्र था की सब ठीक रहा..चार बजे के बाद कल की ट्रेफिक मेनेजमेंट कमिटी की बैठक का एजेंडा तैयार किया...सब कुछ करते रात के आठ बज गए.एजेंडा की फोटो कोपियाँ करने से पहले लाईट चली गयी...तो शहर के उस हिस्से में जहाँ लाईट थी किसी को भेजा गया...कल पर कुछ भी नहीं छोड़ा जा सकता था.नई कलेक्टर मेडम की अध्यक्षता में पहली मीटिंग थी ,सो मैं पूरी तैयारी कर जाना चाहता था.नौ बजे तक सब काम निपटते देख कर मुझे तसल्ली हो रही थी.अचानक हमारे विभाग के प्रदेश के सबसे बड़े अधिकारी का फोन आगया.रात को मुझे स्वयम को मौके पर रहते हुए जिले में ओवर लोड वाहनों की चेकिंग कार्यवाही करानी थी.फिर जब मैंने अपनी चार आदमी की सेना को फ़ौरन हाजिर होने का हुक्म दे डाला...रात को साढ़े दस बजे तक तीन ने बीमारी,थकान और ड्राइवर न होने का कारण बताए हुए आने में असमर्थता दर्शाई...चौथे महाशय बिना गार्ड,चालक और गाडी के सामने आकर सेलूट कर खड़े हो गए.अब मुझे गुस्सा आगया...अपने उच्चाधिकारियों को स्थिति बता कर अकेला जंग के लिए रवाना हो गया.जब तक मैं दो घंटे में सात आठ गाड़ियाँ जप्त करता....तब तक ऊपर से कार्यवाही होने की सूचना पाते सारी फ़ौज अपने ठिकाने पर पहुँच गयी.सुबह चार बजते बजते कुलमिलाकर ४५ ट्रक थानों में पहुँच चुके थे.और मैं इस बात से बेखबर निढाल होकर बिस्तर में गिर चुका था कि पिछले २४ घंटे चाय और फास्ट फ़ूड पर गुजारे थे.सुबह नौ बजे उठकर फटा फट तैयार होकर,कलेक्ट्रेट पहुँच गया.होने वाली मीटिंग की कुछ पूर्व तैयारी जो करनी थी.
मीटिंग की आवश्यक व्यवस्थाएं देखी जा रही थी तो पी के सर का फिर फोन आ गया--मैंने गुवाहाटी की टिकट्स बुक करा दी है.तेरह को सुबह साढ़े आठ बजे फ्लाईट है.
और मैं चौंक गया.मैंने तो अभी अपने अफसरों से छुट्टी भी नहीं ली है.आनन फानन में सबको सूचना दी..और उसके बाद मीटिंग में व्यस्त हो गया.दोपहर को जयपुर के लिए कार से रवाना हो गया.पहले कुलदीप से बात की जो मेरे मित्र और इस सफ़र पर मेरे साथ चलने वाले थे.उनको साथ लेते हुए हम जयपुर के लिए रवाना हो गए. ड्राइवर कार को शहर से बाहर तक ले आया तबतक दिमाग से पिछले चार दिनों की भागदौड़ की थकान और तनाव विसर्जित होता नजर आया.मैं काफी हल्का महसूस कर रहा था और उसी समय कार की सीट पर नींद ने मुझे अपनी आगोश में ले लिया.जब आँख खुली तो मेरी कार जयपुर की गलियों को नाप रही थी.
कार रुकी तो पी के सर अपने विशाल बंगले के गेट पर बाहें फैलाए हमारा इन्तजार कार रहे थे.
5 टिप्पणियां:
प्रकाश जी जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई...!!
venus kesari
जन्मदिन की बहुत बधाई...जारी रहिये. अच्छा लग रहा है आपका संस्मरण (अब तो संस्मरण ही कहलाया. :)))
अरे वाह..जन्मदिन भी है किसी का...आपको बहुत बहुत बधाई..आशंका है कि इन्जॉय करने का अवकाश नही होगा आपको इस व्यस्तता के बीच..
वैसे मैं सोच रहा था कि अगर मैं वह दुर्भाग्यशाली बाबु होता जिसकी सीट के पास आपने तंबू गाड़ दिया था..सो मन्स्थिति क्या होती.और आप्की प्रशंसा के शब्द किस डिक्शनरी से खोज रहा होता ;-)
खैर काश आप के जैसी व्यग्रता और त्वरित ऐक्शन की अपेक्षा हम देश के अन्य विभागों से भी कर सकते...
अब जहां के लिए टिकट बुक करवाई उसका इंतज़ार है.
फौजी भाई की प्रेरणा वाला एपिसोड पढ़कर ठठा कत हँस पड़ा।
अरे हाँ, जन्म-दिन की विलंबित मुबारकबाद!
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